_________________________________________ मुजफ्फरनगर जनपद के१०० किमी के दायरे में गंगा- यमुना की धरती पर स्थित पौराणिक महाभारत क्षेत्र
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गाजियाबाद जनपद के मोदीनगर से लगभग 15 – किलोमीटर दूर स्थित सुराणा गांव। हिंडन नदी के रेतीले क्षेत्र में बसा यह एक प्राचीन और ऐतिहासिक गांव है।
इस गांव में हिंडन नदी के पूर्वी तट पर प्राचीन शिव मंदिर स्थित है। इस मंदिर को सुप्रसिद्ध विद्वान पंडित दुर्गादत्त जी कि एक प्राचीन पांडुलिपि में ‘रूपेश्वर महादेव’ कहा गया है। यह प्राचीन शिव मंदिर उस समय के वैभव पूर्ण इतिहास का स्मरण कराता है। दूर-दूर से श्रद्धालु यहां स्थित शिवलिंग का जलाभिषेक करने के लिए आते हैं। महाशिवरात्रि तथा आंवला एकादशी के अवसर पर यहां बड़ा मेला लगता है। महाशिवरात्रि पर्व पर बड़ी संख्या में कांवड़िए हरिद्वार से कावड़ में पवित्र गंगाजल भरकर यहां जलाभिषेक करने के लिए पैदल कांवर लेकर आते हैं। यह प्राचीन शिव मंदिर हिंडन नदी के तट पर ही स्थित होने के कारण नदी में पानी की अधिकता होने के समय नदी के कटाव से खतरा बना रहता है अतः इस मंदिर को हिंडन नदी के कटाव से बचाने के हर संभव प्रयास किए जाएं।
सुराणा एक बड़ा गांव है इस गांव के निकट हिंडन नदी के दूसरी और चमरावल गांव है यह गांव आजकल चांदीनगर के नाम से विख्यात है चांदीनगर गांव में एक बहुत बड़ा रडार केंद्र है जो सजग प्रहरी की तरह शत्रु पक्ष के आक्रमक विमानों से देश की रक्षा करता है
चांदीनगर गांव में सड़कों का संपर्क आसपास के मेरठ, बागपत, बड़ौत, खेकड़ा, दिल्ली तथा हरियाणा से भी है।
सुराणा गांव से लगभग 7 किलोमीटर दूर पौराणिक स्थान बालोनी है। बालोनी महर्षि वाल्मीकि के आश्रम के लिए प्रसिद्ध है। इसके निकट ही प्रसिद्ध पुरा महादेव मंदिर स्थित है जहां महाशिवरात्रि के अवसर पर कई लाख कावड़िए जलाभिषेक करने के लिए आते हैं और इस अवसर पर यहां बड़ा मेला लगता है।
इस ग्रामीण इलाके में गन्ने की फसल प्रमुखता से उगाई जाती है।
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सुराणा गांव – जहां रक्षाबंधन को अपशकुन माना जाता है।
रक्षाबंधन के पर्व को पूरे देश में भाई बहन के पवित्र प्रेम के प्रतीक के रूप में परंपरागत रूप से, बड़े उत्साह से मनाया जाता है।
वहीं मुरादनगर से केवल 15 किमी दूर गाजियाबाद के इस सबसे बड़े यादव बाहुल्य गांव में रक्षाबंधन के पर्व को अपशकुन मानते हैं। सुराणा गांव की सैकड़ों बहने अपने भाइयों की कलाई पर राखी नहीं बांधती।
कई सौ वर्षों से चली आ रही प्रथा के अनुरूप कोई बहन अपने भाई को राखी बांधने के लिए गांव नहीं आती। इस गांव में रक्षाबंधन पर्व के दिन किसी भी प्रकार के खुशी और गम का वातावरण नहीं होता।
इस गांव में रक्षाबंधन के त्यौहार को अपशकुन मानने के पीछे एक दर्दभरी लंबी कहानी है।
पहले इस गांव का नाम सोहनगढ़ था बाद में इस गांव का नाम सुराणा कहा जाने लगा। इस गांव के यादव बिरादरी के छबड़िया गोत्र के लोग रक्षाबंधन के त्यौहार को अपशकुन मानते हैं। सोहनगढ़ से सुराणा में बदले इस गांव का इतिहास बहुत पुराना और पीड़ामय है।
बताते हैं कि सैकड़ों साल पहले पृथ्वीराज चौहान के ही वंश के पृथ्वी सिंह ने राजस्थान से यहां आकर हिंडन नदी के किनारे अपना डेरा डाला, यहां उनके दो पुत्र हुए विजय सिंह राणा व सोहरन राणा। विजय सिंह राणा को घुड़सवारी का बहुत शौक था। उसने बुलंदशहर की जसकौर से शादी कर ली और हिंडन नदी के पास रहने लगे। उन्होंने इस जगह का नाम सोहनगढ़ रख लिया। उसी दौरान छिकर गांव के सागर की पुत्री राजवती से सोहरन सिंह राणा ने शादी कर ली।
इसी दौरान मोहम्मद गौरी को यह सूचना मिली कि पृथ्वीराज चौहान के कुछ स्वजन सोहनगढ़ में रह रहे हैं। मोहम्मद गौरी ने सन 1206 में सोहनगढ़ पर चढ़ाई कर दी। उस दिन रक्षाबंधन का पवित्र दिन था। मोहम्मद गौरी ने पूरे गांव में औरतों व बच्चों सहित लोगों को हाथियों के नीचे कुचलवा दिया। इसमें विजय सिंह और सोहन सिंह भी मारे गए।
अपने पति की मृत्यु के बाद जसकौर चीता में बैठकर सती हो गई। इस लड़ाई के बाद गांव में कोई जीवित नहीं बचा था। सोहरन सिंह की पत्नी राजवती उस समय अपने दोनों लड़कों लखी व चुपड़ा को लेकर अपने मायके गई हुई थी।
सोहरन सिंह के दोनों पुत्रों ने सन 1236 में दोबारा इस गांव को बसाया और अपने पिता के नाम पर इस गांव का नाम सोहरन रखा। बाद में है गांव सुराणा कहा जाने लगा। लखी के चार व चुपडा के दो संताने हुई। इनके नाम पर गांव में पट्टियां मोहल्ला बस गए।
इस समय भी इस गांव में छह पट्टियां लखी की और एक पट्टी चुपड़ा की मानी जाती है।
छाबड़िया गोत्र के लोग इतनी सदियां बीत जाने के बाद भी उस दिन को भुला नहीं पाए हैं।
रक्षाबंधन के त्योहार की इस परंपरा को यदि किसी ने छोड़ने का प्रयास किया तो उस परिवार के साथ कोई न कोई अप्रिय घटना घट जाती है।
ऐसा एक नहीं कई बार हो चुका है। इसलिए रक्षाबंधन के त्यौहार को अपशकुन मान कोई भी बहन इस दिन अपने भाई के हाथ पर राखी नहीं बांधती है।
इस गांव में सती जसकौर की सतियों के नाम से पूजा की जाती है। गांव में उनका मंदिर भी बना हुआ है। छबड़िया गोत्र के लोग आज भी सैकड़ों वर्ष की परंपरा का निर्वाह कर रहे हैं।