_________________________________________________मुजफ्फरनगर जनपद(उ.प्र.भारत) के १०० किमी के दायरे में गंगा-यमुना की धरती पर स्थित पौराणिक महाभारत क्षेत्र
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बिजनौर जनपद के नजीबाबाद शहर से 2 किमी दूर स्थित है पत्थरगढ़ किला। इस किले के इतिहास के पन्नों में नवाबों के शौक, अंग्रेजों का कहर और सुल्ताना डाकू से जुड़ी अनेकों कहानियां दर्ज हैं। वैसे इस किले को लोग सुल्ताना डाकू के किले के रूप में जानते हैं।
वही सुल्ताना डाकू जो लगभग 100 वर्ष पूर्व आतंक का पर्याय था। लेकिन गरीबों के बीच में वह बहुत लोकप्रिय था। वह अमीरों को लूटकर गरीबों की मदद किया करता था उनकी लड़कियों के विवाह तक करवाता था।
बताया तो यह भी जाता है कि सुल्ताना डाकू अंग्रेजों के विरुद्ध सशस्त्र क्रांति कर रहे क्रांतिकारियों को हथियार चलाना सिखाता और उन्हें कारतूस आदि की आपूर्ति करने का काम भी करता था।
ऐसा कहा जाता है की सुल्ताना डाकू उस समय के बड़े जमींदार और साहूकारों को चुनौती देकर लूटता था और अपने खर्च की धनराशि को रखकर शेष लूटे हुए धन से समाज के जरूरतमंद लोगों की मदद करता था। उसके इसी तरह के व्यवहार से आमजनता में सुल्ताना का कोई विरोध नहीं था।
उसके बारे में लोग बताते हैं कि सुल्ताना ने नागल थाने के गांव तिसोतरा व जालपुर में बड़े जमीदारों के यहां डकैती डालकर अपने आतंक को बढ़ाया। उसने कनखल, लकसर, श्यामपुर, नांगल सोती, बिजनौर, नगीना आदि थानों के इलाकों में अनेक डकैतियां डाली।
सुल्ताना की विशेष बात यह थी कि डाकू होने के बावजूद म
वह महिलाओं की इज्जत करता था और अपने गिरोह के लोगों को महिलाओं के पहने हुए जेवरों को लूटने की इजाजत नहीं देता था।
सुल्ताना डाकू के बारे में तो यह भी कहा जाता है कि वह डकैती डालने से पहले ही डकैती के दिन व समय का इस्तहार उस मकान पर चिपकवा दिया करता था। लेकिन इस तरह की बात पर विश्वास करना कठिन है, हां उसने एक बार नजीबाबाद से लगभग 10 किलोमीटर दूर जालपुर में जमींदार जुब्बा सिंह को सबक सिखाने के लिए इश्तहार लगाकर डकैती डाली थी।
सौ साल बाद भी उत्तर भारत के तराई के इस इलाके में लोगों के बीच सुल्ताना डाकू के अपराधों और गरीबों की मदद के किस्से आज भी मशहूर हैं। उस दौर में आतंक का पर्याय रहे सुल्ताना डाकू की छवि रॉबिनहुड सरीखी थी।
अपने जीवन काल में ही दंत कथाओं के नायक का दर्जा पा चुके बिजनौर जिले के डाकू सुलताना को कई साल की कोशिशों के बाद फ्रेडिक यंग की कमान में बने विशेष दल ने पकड़ा था और उसे फांसी दिलाई थी।
सुल्ताना डाकू को पकड़ने के लिए जो विशेष दल बनाया गया था उस दल में प्रसिद्ध शिकारी जिम कार्बेट भी शामिल थे।
सुल्ताना डाकू को पकड़ने की रोमांचक दास्तान को जिम कार्बेट ने अपनी एक पुस्तक ‘माई इंडिया’ में एक लेख सुल्ताना-इंडियन रॉबिनहुड नाम से लिखा है। उस लेख में उन्होंने उसकी जमकर प्रशंसा की है।
कुछ साल पहले किए गए डाकू सुलताना और उसे पकड़ने वाले अंग्रेज पुलिस अफसर फैड्रिक यंग पर किए गए शोध में कई रोचक तथ्य सामने आए। यह शोध उस समय सुल्ताना डाकू को पकड़ने के लिए बनाई गई टास्क फ़ोर्स के बारे में फैड्रिक यंग के द्वारा अंग्रेज सरकार को रोजाना भेजी जाने वाली रिपोर्टों के ऊपर आधारित है। जिन्हें ब्रिटिश म्यूजियम से हासिल की गई।
फ्रेड्रिक यंग की भेजी उन्हीं गोपनीय रिपोर्टों से पता चला था कि सन 1923 में यंग ने गोरखपुर से लेकर हरिद्वार तक के इलाकों में ताबड़तोड़ 14 छापे मारे थे। उन्हीं मारे गए छापों में एक बार नजीबाबाद के जंगलों में बनाए गए सुल्ताना के एक स्थाई ठिकाने पर भी छापा मारा गया था। लेकिन सुल्ताना उससे पहले ही वहां से भाग गया था। तब उस छापे में उसके ठिकाने से भारी मात्रा में हथियार बरामद हुए थे। जिसमें उसकी 11 बंदूकें, कारतूस और तलवारें बरामद हुई थी।
इस छापे के बाद सुल्ताना ने एएसपी यंग को व्यंगात्मक पत्र भेजा था जिसमें उसने लिखा था कि अगर अंग्रेज सरकार के पास हथियारों की कमी हो गई है तो उसे ऐसे ही परेशान होने की आवश्यकता नहीं। बाद में फिर कभी जरूरत पड़े तो सुल्ताना से कह देना। उसे अंग्रेज सरकार को हथियार सप्लाई करने पर खुशी होगी।
मिस्टर यंग ने सुल्ताना की ऐसी ही फितरत को देखते हुए उसके द्वारा आत्मसमर्पण कराने की बात सोची। इसके लिए यंग ने अंग्रेज सरकार से जंगल में सुल्ताना से अकेले मिलने की अनुमति मांगी। जिस पर अंग्रेज सरकार ने उस मुलाकात के दौरान होने वाले खतरे को देखते हुए स्वयं यंग के ही जिम्मेदार होने की शर्त पर अनुमति दे दी।
दस्तावेजों के अनुसार मिस्टर यंग ने उसी दौरान पकड़े गए सुल्ताना के दो साथियों के माध्यम से उस तक संदेश पहुंचवाया। सुल्ताना ने मुलाकात करना तो स्वीकार कर लिया लेकिन एक शर्त रखी की दोनों नजीबाबाद के सुदूर जंगल में अकेले और निहत्थे ही मिलेंगे।
योजना के अनुसार दोनों अकेले और निहत्थे नजीबाबाद के दूर के जंगल में मिले। सुल्ताना डाकू बड़ा चालाक था जंगल में नियत स्थान पर जहां यंग उसका इंतजार कर रहे थे वह एक बड़ा सा तरबूज लेकर उनके पास पहुंचा। उसने यंग की टोह लेने के लिए अपने साथ लाए तरबूज को उनके सामने पेश किया और उसे काटकर खाने को कहा।
माना जाता है इसके पीछे सुल्ताना का यह जानने का इरादा होगा कि एएसपी यंग वास्तव में निहत्थे ही हैं या अपने साथ कोई हथियार लाए हैं। जबकि वास्तव में यंग के पास कोई हथियार नहीं था और दोनों ने मिलकर तरबूज खाया।
इस मुलाकात के दौरान यंग ने सुल्ताना से आत्मसमर्पण करने के लिए कहा। सुल्ताना ने उनसे कहा कि उसने कभी कोई हत्या नहीं की है। इस आधार पर उसने उनके सामने शर्त रखी कि उस पर हत्या का कोई मुकदमा नहीं चलाया जाए। मिस्टर यंग ने नियम कानूनों का हवाला देकर इससे इंकार कर दिया। लेकिन उसे आश्वासन दिया कि वह कोशिश करेंगे कि उसे कम से कम सजा मिले। सुल्ताना इस बात पर राजी नहीं हुआ और दोनों लौट गए। लेकिन जाते समय सुल्ताना ने मिस्टर यंग से व्यंग में कहा था कि ‘अपनी जिंदगी ऐसे ही खतरे में नहीं डाला करो’।
इसी प्रकार की एक अंग्रेज पुलिस अफसर और एक डाकू में हुए अजब दोस्ताना संबंधों की दास्तान रूपी यह बातें शोध में निकलकर सामने आई।
दोनों के बीच आपस में संदेशों का दौर भी चला जिसमें दोनों एक दूसरे को संदेश भेजते थे।
फैड्रिक यंग ने सुल्ताना डाकू को फांसी होने से पहले वचन दिया था। जिस पर उन्होंने पूरी जिंदगी अमल किया। दिए गए वचन के अनुसार उस अंग्रेज अफसर ने सुल्ताना की पत्नी और उसके बेटे को पाला। सुल्ताना के बेटे को अंग्रेज अफसर ने अपना नाम दिया और लंदन भेजकर पढ़वाया और फिर आईसीएस अफसर बनाया।
मिस्टर यंग ने हरिद्वार के निकट मीठी बेर के जंगल से सुल्ताना डाकू को पकडकर गिरफ्तार किया था। गिरफ्तारी के बाद सुल्ताना को बिजनौर की जिला जेल में रखा गया था।
सुल्ताना डाकू को जिस कालकोठरी में रखा गया था। वह काल कोठरी देखभाल के अभाव में जर्जर होकर जीर्ण-शीर्ण स्थिति में थी। लेकिन बताया जाता है इस ऐतिहासिक धरोहर को आम जनता भी देख सके ऐसी व्यवस्था करने का प्रशासन का इरादा है।
जिस कालकोठरी में सुल्ताना डाकू रहा था उसको मरम्मत करके सुधारा जाएगा। उस कालकोठरी को देखकर सुल्ताना डाकू की यादें ताजा हो जाती हैं।