__________________________________________________मुजफ्फरनगर जनपद (उ.प्र.-भारत)के १०० कि.मी.के दायरे में गंगा-यमुना की धरती पर स्थित पौराणिक महाभारत क्षेत्र
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हरिद्वार में प्रसिद्ध भगवती मायादेवी मंदिर के निकट ही सबकी मनोकामना पूरी करने वाले आनंद भैरव का प्रसिद्ध पौराणिक मंदिर है।
इस मंदिर की प्राचीनता के बारे में कहा जाता है कि यह पृथ्वी पर गंगा जी के अवतरण से भी पूर्व का मंदिर है।
भूतभावन भगवान भैरव आपत्तीविनाशक एवं सर्व मनोकामनाओं की पूर्ति करने वाले देवता हैं। भूत-प्रेत बाधा उत्पन्न होने पर उसकी मुक्ति में भैरव जी की उपासना फलदाई होती है।
प्राय: हर गांव नगरों में स्थित देवी मंदिरों में भी भैरव विराजमान रहते हैं। देवी प्रसन्न होने पर भैरव को आदेश देकर ही अपने श्रद्धालु भक्तों की कार्य सिद्धि करा देती हैं। भैरव जी को शिव का अवतार माना गया है अत:वे शिव स्वरूप ही हैं।
पौराणिक कथा के अनुसार ब्रह्मा जी के पुत्र दक्ष प्रजापति की पुत्री सती का विवाह भगवान शंकर के साथ हुआ था। दक्ष ने भगवान शंकर से रुष्ट होकर उन्हें अपमानित करने के लिए अपनी राजधानी कनखल में एक विशाल यज्ञ आयोजित किया।
इस यज्ञ में राजा दक्ष ने अनेक ऋषि-मुनियों, देवताओं तथा ब्राह्मणों को आमंत्रित किया किंतु ईर्ष्यावश अपनी पुत्री सती और भगवान शंकर को निमंत्रण नहीं भेजा। देवी सती
ने अपने पिता के द्वारा आयोजित यज्ञ में सम्मिलित होने के लिए भगवान शिव से आग्रह किया। भगवान शिव बिना निमंत्रण के उस यज्ञ में जाना नहीं चाहते थे, परंतु देवी सती के प्रबल आग्रह के कारण अपने अनुचर नंदीगण तथा सेनापति भैरव जी के साथ देवी सती को कनखल में दक्ष प्रजापति के यहां आयोजित होने वाले यज्ञ में सम्मिलित होने के लिए भेज दिया।
भैरव जी स्वयं कनखल के निकट उपवन में विचरण करने लगे और देवी सती नंदीगण के साथ कनखल में आयोजित होने वाले यज्ञ में चली गई।
वर्तमान में हरिद्वार में जहां भैरव अखाड़े में अति प्राचीन भैरव जी का मंदिर है वहां पर ही तब भैरव जी ने बैठकर विश्राम किया था।
प्राचीन इतिहास से ज्ञात होता है कि मुस्लिम आक्रांता तैमूरलंग दिल्ली को लूटने के बाद मेरठ-बिजनौर में मारकाट मचाता हुआ हरिद्वार आया जहां उसने भीषण मारकाट एवं नरसंहार करके अनेक प्राचीन मंदिरों को भूमिसात कर दिया। कहते हैं कि जैसे ही तैमूर लंग ने भैरव मंदिर पर आक्रमण किया तो सर्वप्रथम उसने भैरव जी की प्रतिमा पर प्रहार किया जिससे मूर्ति से रक्त की धारा बह निकली और असंख्य भूत-प्रेत तथा पिशाचों
ने घेर लिया, वह मूर्छित हो गया और उसकी सेना विक्षिप्त हो गई तथा तैमूर किसी तरह से बच कर भागकर सरसावा होता हुआ समरकंद चला गया।
भगवती मायादेवी हरिद्वार की अधिष्ठात्री देवी कहलाती हैं। यह विख्यात तीर्थ उन्हीं के नाम पर बसा हुआ है। हरिद्वार का प्राचीन एवं पौराणिक नाम मायापुरी ही है। आज भी दूर दूर के असंख्य श्रद्धालु मायादेवी तथा आनंद भैरव जी के दर्शनों तथा अपनी मनोकामनाओं की पूर्ति के लिए यहां पहुंचते हैं।
आनंद भैरव जी का यह मंदिर बहुत सिद्ध स्थान है। यहां हजारों वर्षों से अखंड ज्योति जल रही है। श्री आनंद भैरव जी के दर्शन करने के लिए आने वाले श्रद्धालुओं को उन्होंने कभी निराश नहीं किया।
प्रत्येक शनिवार के दिन यहां श्रद्धालुओं की बहुत भीड़ होती है। भैरव जयंती के अवसर पर यहां बहुत बड़ा उत्सव होता है जिसमें श्रद्धालुओं की भारी भीड़ यहां भैरव जी के दर्शन के लिए उमड़ती है।