__________________________________________________ मुजफ्फरनगर जनपद के१०० किमी के दायरे में गंगा-यमुना की धरती पर स्थित पौराणिक महाभारत क्षेत्र
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सन 1857 में हिंडन नदी के किनारे स्वतंत्रता संग्राम की पहली लड़ाई में वीर सैनिकों ने अपना जीवन न्योछावर कर दिया था
सन 1857 की 30 और 31 मई को आजादी के दीवाने सैनिकों ने हिंडन नदी के तट पर युद्ध लड़ा था और ईस्ट इंडिया कंपनी की सेना को गाजियाबाद से वापस बागपत की तरफ मुड़ने के लिए मजबूर कर दिया था।
उसी स्थान पर उन शहीदों की स्मृति ने एक स्मारक बनाया गया है।
अंग्रेज 1857 के स्वतंत्रता संग्राम को ‘ग़दर’ कहते थे। शैक्षिक संस्थाओं में आज भी इस समय का जो इतिहास पढ़ाया जाता है, उसे अंग्रेजों ने अपने शासनकाल में लिखा था और आज भी इसे गदर ही कहा जाता है।
गाजियाबाद इतिहास समिति ने खोजबीन करके कई नए तथ्यों पर प्रकाश डाला है। समिति द्वारा की गई खोज से पता चला है कि स्वतंत्रता की पहली लड़ाई 30 और 31 मई 1857 को हिंड़न ‘यमुना’ के किनारे पर लड़ी गई थी। आजादी की लड़ाई का यह पहला संग्राम 30 मई1857 की सुबह शुरू हुआ और अगले दिन दोपहर तक चला था। इस युद्ध में दोनों और के 400 से भी अधिक सैनिक मारे गए थे।
समिति को खोजबीन के आधार पर पता चला है कि अंग्रेजों ने उस समय तोपों से 5 से लेकर 9 पौंड तक के गोले तोपों से छोड़े थे। एक तरफ अंग्रेजों की ओर से आठ सौ सशस्त्र सैनिक लड़ रहे थे और दूसरी ओर लगभग एक हजार स्वतंत्रता सैनिक थे। अंग्रेजों की तोपों को लगातार आग बरसाते देख कई स्वतंत्रता सैनिक नदी में कूद गए और तैरते हुए दूसरी ओर अंग्रेजों की तोपों तक जा पहुंचे। उन बहादुर सैनिकों ने आग उगलती तोपों की परवाह न करते हुए उन पर हमला कर उन्हें खामोश कर दिया, लेकिन इस भयंकर लड़ाई में कई स्वतंत्रता सैनिकों को अपने जीवन से हाथ धोना पड़ा था। कहते हैं कि उस समय उनके खून से नदी का पानी भी लाल हो गया था। इस लड़ाई में अंग्रेजों को भी काफी नुकसान हुआ और वे घायलों को मेरठ ले गए। स्वतंत्रता सैनिकों की वीरता के कारण अंग्रेज वहां से आगे नहीं बढ़ पाए और उन्हें बागपत की ओर मुड़ना पड़ा था।
अंग्रेजों की योजना थी कि देश की राजधानी दिल्ली से आवाजाही के लिए हिंडन नदी पर कब्जा कर लिया जाए। नदी पर कब्जे से दूसरे मार्ग का आवागमन टूट जाएगा और अंग्रेजी शासन की ताकत और बढ़ जाएगी। मेरठ में हुई 1857 की क्रांति से निपटने के लिए अंग्रेजी फौज की एक टुकड़ी मेरठ की ओर रवाना हुई। गाजियाबाद के रणबांकुरे ने अंग्रेजों की सेना को हिंडन नदी के तट पर ही थाम लिया। क्रांतिकारियों ने अंग्रेजों की फौज से युद्ध किया। इस ऐतिहासिक युद्ध में 18 पौंड वाला तोपखाना, घुड़सवार तोपखाना, पैदल सेना, अश्व रोही दल शामिल थे। हिंडन के करीब आते ही अंग्रेजों की सेना पर क्रांतिकारियों ने हमला कर दिया। स्वतंत्रता सैनिकों के निशाने बिल्कुल सधे हुए थे। क्रांतिकारियों ने नदी के दूसरी ओर ऊंचे टीले पर एक मील लंबा मोर्चा लगाया था। रणबांकुरे ने अंग्रेजी सेना को हिंडन का पुल पार नहीं करने दिया। क्रांतिकारियों से डर कर अंग्रेज सेना बागपत की तरफ मुड़ गई। इस युद्ध में बड़ी संख्या में अंग्रेजी सिपाही मारे गए और घायल हुए। कई सैनिकों ने मेरठ में दम तोड़ दिया था। हिंडन क्रांति में मारे गए अंग्रेजी फौजों के सैनिकों कि हिंडन किनारे अभी भी कब्र बनी हुई हैं।