___________________________________________________________मुजफ्फरनगर जनपद के १०० किमी के दायरे में गंगा-यमुना की धरती पर स्थित पौराणिक महाभारत क्षेत्र
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सप्तऋषि आश्रम – सप्त सरोवर –
यह स्थान साधना का प्रमुख क्षेत्र माना जाता है। आज भी यहां कई साधक तपस्यारत हैं।
** प्राचीन काल में इस स्थान पर कश्यप, भारद्वाज, अत्रि, गौतम, विश्वामित्र, यमदग्नि और वशिष्ठ इन सप्तऋषियों जैसे महान ऋषियों ने तप किया है।
कहा जाता है कि लोक कल्याण की भावना से सप्तऋषि अरुंधति के साथ गंगा जी के पृथ्वी पर प्रवाहित होने से पहले तीर्थ की खोज में निकले थे। हरिद्वार क्षेत्र में इस स्थान पर घूमते-घूमते अरुंधति को वृक्षों के झुरमुट में एक अलौकिक शिव विग्रह मिला। उस अलौकिक शिवलिंग की पूजा-उपासना करने के लिए सप्तऋषि इसी स्थान पर अपनी कुटिया बनाकर रहने लगे।
पुराणों के अनुसार जब महाराजा भगीरथ के पीछे-पीछे सहस्त्रों पर्वतों को विदिर्ण करती हुई गंगा जी यहां पृथ्वी पर समतल मैदान की ओर पहुंची तो हरिद्वार में प्रवेश करते ही रास्ते में उन्हें अपनी कुटियों पर तप हुए सप्तऋषि मिले। गंगा जी संशय में पड़ गई कि जिस भी महर्षि की कुटिया से होकर वह न गुजरी तो उनके क्रोध व श्राप का सामना करना पड़ेगा। तब गंगा जी ने संशय को त्याग कर इस स्थान पर अपनी धारा को सात भागों में विभक्त कर सभी सप्त ऋषियों की कुटियों के आगे से होकर बहती हुई आगे बढ़ गई।
** सप्तऋषि स्थान के बारे में एक और कथा पुराणों में शंकर और पार्वती संवाद के रूप में मिलती है। भगवान शंकर ने देवी पार्वती से कहा कि जब गंगा जी इस क्षेत्र में स्वर्गद्वार के पास पहुंची तो एक बड़ी अद्भुत बात हुई। गंगा जी गंगोत्री से महाराज भगीरथ के पीछे-पीछे ऊंचे पर्वतों की घाटियों में तेजी से उछलती- कूदती गर्जना करती हुई बहती आ रही थी।
राजा भगीरथ को इस स्थान पर गंगा के प्रवाह की ध्वनि सुनाई नहीं दी। राजा भगीरथ सोचने लगे की गंगा जी यहां फिर क्यों रुक गई। तब गंगा जी ने राजा भगीरथ से कहा राजन यहां सप्त ऋषियों के आश्रम हैं। इन सप्तर्षियों में प्रत्येक ऋषि चाहते हैं कि गंगा उनके आश्रम के आगे से होकर जाए। मैं जिस किसी भी ऋषि के आश्रम के पीछे से होकर जाऊंगी। वही मुझे श्राप दे देंगे। इसी भय के कारण मैं यहां रुक गई हूं।
उसी समय आकाशवाणी हुई और आकाशवाणी के बताए अनुसार गंगा जी सात धाराओं में होती हुई उन सभी सप्तऋषियों के आश्रमों के आगे से होकर बहती हुई आगे निकली। इससे सप्तऋषि बहुत प्रसन्न हुए और उन सभी ने गंगा जी का पूजन किया।
इसलिए यह स्थान सप्तऋषि के नाम से प्रसिद्ध है।
* पुराणों में इस स्थान की महिमा के विषय में बताया गया है कि हरिद्वार में सप्तगंग (सप्त सरोवर) नाम से विख्यात उत्तम तीर्थ है। वह संपूर्ण पातकों का नाश करने वाला है। वहां सप्तऋषियों के पवित्र आश्रम हैं। उन सब में पृथक- पृथक स्नान और देवताओं एवं पितरों का तर्पण करके मनुष्य ऋषिलोक को प्राप्त होता है। राजा भगीरथ जब देवनदी गंगा को लेकर आए उस समय उन सप्तऋषियों की प्रसन्नता के लिए वे सात धाराओं में विभक्त हो गई। तब से पृथ्वी पर वह सप्तगंग नामक तीर्थ विख्यात हो गया।
यह स्थान सप्तसरोवर के नाम से भी प्रसिद्ध है। इस स्थान पर अब गंगा जी की सात धाराओं के तो दर्शन नहीं होते लेकिन यहां पर गंगा जी को अलग-अलग धाराओं बहते हुए आज भी देखा जा सकता है।
महाभारत के अनुसार कुरुक्षेत्र में युद्ध के पश्चात धृतराष्ट्र, गांधारी, कुंती, विदुर, संजय ने संसार से विरक्त हो इसी स्थान पर ऋषियों के आश्रम में तपस्या करते हुए अपना अंतिम समय व्यतीत किया था।
— इस स्थान के महत्व को देखते हुए गोस्वामी गणेशदत्त जी महाराज ने अथक प्रयास करके इस लुप्त तीर्थ सप्तसरोवर का अन्वेषण करा कर गंगा तट पर शास्त्रीय आधार पर इसका निर्माण व पुनरोद्धार कराया था। उस समय भारत के प्रथम राष्ट्रपति स्व. डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने आश्रम का उद्घाटन किया था।
यहां गंगा जी के तट पर एक विशाल आश्रम में ऋषियों के नाम से अनेक कुटियां हैं। इनमें समय-समय पर साधक, संत-महात्मा आकर रहते हैं और साधना, स्वाध्याय व सत्संग आदि करते हैं।
यहां पर सप्तऋषियों के नाम से कुटिया मंदिर, महामना मदन मोहन मालवीय जी की प्रतिमा, परमहंस स्वामी रामतीर्थ की प्रतिमा एवं गोस्वामी गणेश दत्त जी की स्मृति में एक गगनचुंबी स्तंभ स्थापित हैं।
नित्य आश्रम के मंदिर में पूजा अर्चना एवं यज्ञशाला में हवन किया जाता है। आश्रम में संस्कृत पाठशाला, औषधालय, अन्नक्षेत्र, गौशाला आदि भी है।
* यहां पर महर्षि वशिष्ठ की पत्नी अरुंधति के इष्टदेव गंगेश्वर महादेव का विशाल मंदिर प्रमुख रूप से दर्शनीय है।
* सप्त सरोवर एवं उसके आसपास के इलाके में बड़ी संख्या में नए-नए बने हुए भव्य मंदिर और आश्रम स्थापित हैं।
* सतनारायण मंदिर –
यह प्राचीन एवं पौराणिक मंदिर सप्तसरोवर से 5 किमी की दूरी पर स्थित है। इस मंदिर के सामने ही सदैव शीतल जल से भरा रहने वाला एक कुंड है।
* वीरभद्रेश्वर मंदिर –
यह प्राचीन एवं पौराणिक मंदिर सतनारायण मंदिर से
8 किमी की दूरी पर स्थित है।
* भीमगोडा –
सप्त सरोवर से 3 किमी दूर दक्षिण दिशा में महाभारतकालीन भीमगोडा स्थित है।