_____________________________________________________________मुजफ्फरनगर जनपद (उ.प्र.- भारत) के १०० कि. मी. के दायरे व उसके निकट गंगा-यमुना की धरती पर स्थित पौराणिक महाभारत क्षेत्र
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देहरादून जनपद से ही लगा हुआ रवाईं जौनपुर का इलाका है। इस रवाईं क्षेत्र में उत्तराखंड व हिमाचल प्रदेश की सीमा पर स्थित पहाड़ी पट्टियों में से एक है – फतेह पर्वत। इस क्षेत्र में लगभग ७० गांव बसे हुए हैं। इन्हीं में से एक गांव नैटवाड़ है। यह नैटवाड़ गांव दुर्योधन के जन्म स्थान के रूप में प्रसिद्ध है। यहां के निवासी दुर्योधन को अपना देवता मानकर बड़े सम्मानपूर्वक उसकी पूजा करते हैं।
नैटवाड़ गांव रुपिन और सूपिन – इन दो नदियों के संगम पर बसा है, जहां ये दोनों नदियां मिलकर टोंस नदी बनती है। लेकिन अचरज की बात यह है कि जहां सारी दुनिया में दो नदियों के संगम को पवित्र प्रयाग माना जाता है, लेकिन रुपिन और सूपिन नदियों के संगम को दुर्भाग्यवश पवित्र प्रयाग नहीं माना जाता है, इन नदियों के संगम पर स्नान करना तो दूर, उसके जल का स्पर्श करना भी वर्जित है।
यही नैटवाड़ गांव पोखू महाराज की राजधानी भी है। पोखू महाराज कोई देवता नहीं बल्कि एक दैत्य हैं पर ये यहां पूजे जाते है। इनका यहां यह आतंक है कि किसी को श्राप न दे दें। नैटवाड़ गांव में पोखू देवता का मंदिर है।
पोखू देवता अपशकुन के देवता हैं और इस दैत्य को देखना अपशकुन है। अत: कहते हैं कि इन का सिर और धड़ जमीन के अंदर तथा पैर जमीन से बाहर हैं यानी कि ये उल्टे खड़े हैं। लोग इनके मंदिर में उल्टे पैर चढ़ते हैं तथा पीठ की ओर से नमस्कार करके लौट आते हैं। यहां के निवासी इन्हें नमन नहीं करके नाराज नहीं करना चाहते आखिर दैत्य को कौन नाराज करना चाहेगा ?
किसी व्यक्ति का किसी अन्य व्यक्ति से झगड़ा हो जाए तो वह चाहेगा कि उसके दुश्मन के ऊपर विपदाएं आएं। इसके लिए इस दैत्य से प्रार्थना की जाती है।इस को घात लगाना कहा जाता है। पोखू देवता प्रार्थना करने वाले व्यक्ति के दुश्मन पर पिल पड़ते हैं। परंतु यदि वह व्यक्ति निर्दोष होता है तो पोखू देवता अपने भक्त को ही दंडित करते हैं और उस पर ही पिल पड़ते हैं। यहां के लोगों का यह विश्वास है कि पोखू देवता झूठों को पहचान कर तुरंत ही दंड देते हैं। इसलिए इस क्षेत्र में दीवानी के आधे से भी अधिक मुकदमे इस देवता के सामने शपथ लेने के उपरांत तुरंत ही तय हो जाते हैं। पोखू को न्याय और भय का दैत्य कहा जाता है।
टोंस नदी इस इलाके से निकली है। टोंस का अर्थ है तमसा। इस नदी में यहां कोई स्नान नहीं करता। यहां स्नान करना वर्जित है शायद अपशकुनी दैत्य के पाद प्रदेश से निकली होने के कारण लोग यहां इस नदी में स्नान न करते हों।