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विशालकाय और भव्य स्वरूप वाला कुचेसर फोर्ट शिल्पकारों की अनूठी कारीगरी का प्रत्यक्ष प्रमाण है।
कुचेसर फोर्ट स्याना तहसील मुख्यालय से 16 किमी दूर स्थित है।
इस किले को ‘दी कुचेसर मड फोर्ट ‘ ( कुचेसर मिट्टी का किला ) के नाम से जाना जाता है। इस किले को बनवाने वाले कुचेसर रियासत के जागीरदार जाट बिरादरी से संबंध रखते हैं। बताया जाता है कि जाट बिरादरी से संबंध रखने वाले पुराने राजा, महाराजा, जागीरदारों आदि के द्वारा निर्मित अधिकांश किले मिट्टी से ही निर्मित पाए जाते हैं।
कुचेसर रियासत के जागीरदारों के पूर्वज मूलतः हरियाणा प्रदेश के हिसार जिला के अंतर्गत आने वाले मंडोती गांव के निवासी थे। मुगल बादशाह औरंगजेब के शासन काल के समय इस परिवार के चार भाई स्याना तहसील से लगभग 10 किलोमीटर दूरी पर स्थित किसोना गांव में आकर स्थाई रूप से रह कर अपना मुख्य व्यवसाय कृषि कार्य करने लगे। उन्होंने अपने रहने के लिए यहां एक गढ़ी को बनवाया। जिसके अवशेष इस परिवार की धरोहर के रूप में आज भी देखे जा सकते हैं।
कई पीढ़ियों के बाद इस परिवार में फतेह सिंह नाम के एक ऐसे व्यक्ति ने जन्म लिया जिसकी जांबाजी, पराक्रम आज भी मिसाल है। जिसके कारण एक समय इस परिवार का नाम जाट बिरादरी के इतिहास में ही नहीं बल्कि भारत के इतिहास में भी अंकित हुआ।
उस समय मुगल शासन निरंतर शक्तिहीन हो रहा था। मुगल शासन पर बादशाह शाह आलम का आधिपत्य था। इसी समय की बात है बहादुर सिंह एक संपन्न किसान होने के साथ साथ मुगल शासन की कुछ खामियों को देख कर इन्होंने शाह आलम को लगान देने से इंकार कर दिया। इससे मुगल शासन में खलबली मच गई और इनकी हठधर्मिता को तोड़ने के लिए मुगल बादशाह शाह आलम ने इस परिवार पर चढ़ाई कर दी। मुगलों की सेना की ताकत के सामने बहादुर सिंह की एक न चली और उन्हें यहां से भागना पड़ा। बहादुर सिंह गढ़मुक्तेश्वर के ब्रजघाट से कुछ दूर स्थित ‘सकरा टीला पुठ ‘ नामक जगह पर जाकर एक घड़ी का निर्माण कर रहने लगे।
लेकिन बहादुर सिंह मुगलों द्वारा अपने ऊपर हुए हमले को भूले नहीं और इसका बदला लेने के लिए वह हर समय बेचैन रहने लगे। इसके लिए उन्होंने एक सेना का गठन किया और शाह आलम पर चढ़ाई कर दी। मुगल बादशाह शाह आलम उनकी इस बहादुरी, पराक्रमी भावना और साहस से बहुत प्रभावित हुआ और दाद दिए बिना नहीं रहा। इनके द्वारा बादशाह शाह आलम से किए गए मुकाबले को देखकर बादशाह शाह आलम ने अपने शासनकाल की अति महत्वपूर्ण कुचेसर रियासत स्वयं बहादुर सिंह को इनाम स्वरूप भेंट की और इन्हें ‘राव’ साहब की उपाधि से सुशोभित किया। कुचेसर रियासत गंगा से लेकर जनपद बुलंदशहर तक विशाल क्षेत्र में फैली हुई थी। इस रियासत में आने वाले 368 गांवों से लगान वसूलने का उत्तरदायित्व भी बहादुर सिंह को ही मिला।
इस रियासत के मिलने के बाद राव बहादुर सिंह ने एक महल जैसे भवन का निर्माण करवाया जो कुचेसर फोर्ट के नाम से विख्यात है। इसमें की गई सुंदर सजीली और महीन नक्काशी को देख कर अनुमान लगाया जा सकता है कि उस समय के शिल्पकारों ने जिस कार्यकुशलता से यह कार्य किया है, उसकी तुलना आज भी नहीं की जा सकती। इस किले का भव्य प्रवेश द्वार, पुरानी दो मंजिला भव्य इमारत के अवशेष उनके दरवाजों पर बने सुंदर नमूने, महल नुमा किले में चमकीले कांच के रंग बिरंगे शीशे पुरानी स्थिति में आज भी इसकी शोभा को बढ़ाते हैं।
विशाल क्षेत्रफल में फैले किले के कुछ दूरी पर पडे खंडहरों को देखकर सहज अनुमान लगाया जा सकता है कि यह राज दरबार का स्थान रहा होगा। इस किले के चारों ओर लाखोरी ईटों और चूने से लगभग पांच से छह फुट मोटी दीवारें बनी है। किले की छतें इमारती लकड़ियों की कड़ियों की बनी हैं तो चमकीले संगमरमर के पत्थरों से निर्मित विभिन्न सुंदर आकृतियों वाले कंगूरे किले की ऊपर की चारदिवारी की सुंदरता को बढ़ाते हैं।
इस किले के मुख्य प्रवेश द्वार को छोड़ क चारों तरफ गहरी खाईयां बनी है जो आज भी वैसी की वैसी ही बनी हुई हैं।
किला परिसर में ही कुछ दूरी पर इस परिवार ने एक आलीशान महल का निर्माण किया था।