महाभारत काल की याद दिलाने वाले इस स्थान के बारे में बताया जाता है कि अज्ञातवास के दौरान पांडवों ने एक रात्री यंहा बिताई थी। पांडव पुत्र रात्रि के समय एक सुरंग से होकर यहां आए थे। उस समय यहां घना जंगल हुआ करता था। पांडवों को जब प्यास लगी तो उन्होंने यहां एक कुए का निर्माण थोड़े से समय में ही करके अपनी प्यास बुझाई थी। उसी समय पांडवों ने यहां शिवलिंग की स्थापना करके पूजा की थी।
खानपुर में स्थित श्री जटाशंकर महादेव मंदिर और कुआं आज भी उस समय की स्मृति करा देते हैं। बाद में पास की ही लंढौरा रियासत की रानी धनकौर ने यहां मंदिर का निर्माण कराया।
शताब्दियों पुराना एक बड़ का पेड़ आज भी यहां हरा-भरा खड़ा है। श्रद्धालु बड़ के पेड़ की परिक्रमा करते हैं इस मंदिर की इस क्षेत्र में बहुत मान्यता है। शिवरात्रि के अवसर पर यहां पर भक्त हरिद्वार से पैदल कांवड़ में जल लाकर शिवलिंग का जलाभिषेक करते हैं। शिवरात्रि के अवसर पर यहां तीन दिवसीय मेले का भी आयोजन किया जाता है। प्रत्येक सोमवार को यहां श्रद्धालुओं की भारी भीड़ होती है।
स्थानीय लोग बताते हैं कि पांडवों के द्वारा निर्मित कुएं के पास एक विशाल पत्थर मिट्टी में दबा हुआ है। इसे एक समय चंदपुरी के महात्मा जी ने खुदवाने का प्रयास किया था। लेकिन जितना खुदाई करते यह पत्थर नीचे की ओर खिसकता गया। यहां के लोग इसे शिव का चमत्कार मानते हैं। यहां के ग्रामीणों की मान्यता है कि मंदिर गांव को दैवीय प्रकोप से बचाता है।
जटाशंकर महादेव मंदिर लक्सर से 15 किलोमीटर दूर स्थित है।