_________________________________________________मुजफ्फरनगर जनपद के १०० किमी के दायरे में गंगा-यमुना की धरती पर स्थित पौराणिक महाभारत क्षेत्र
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छड़ियों का मेला
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क्षेत्र में गुघाल के नाम से जगह-जगह मेलों के आयोजन की परंपरा सदियों पुरानी है। जाहरवीर गोगा जी की माढी पर श्रद्धालुओं की आस्था और विश्वास का अनूठा संगम नजर आता है।
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प्राचीन धार्मिक मान्यताओं के अनुसार माढी का बहुत महत्व है। मान्यता है कि यहां सच्चे मन से मांगी गई हर मुराद पूरी होती है।
इस क्षेत्र के गांव-देहात, कस्बों – शहरों में अनेक स्थानों पर गुग्गा के अनेक पुराने और नए स्मारक बने हुए हैं। इन्हें गुग्गा की माढी कहा जाता है। माढी पर गुग्गा की याद को बनाए रखने के लिए वार्षिक मेलों का आयोजन होता है। जिसमें श्रद्धालु भक्त बड़ी संख्या में पहुंचकर गुग्गा के प्रति अपनी श्रद्धा प्रकट करते हैं और मनोकामनाएं पूरी होने पर भेंट और निशान चढ़ाते हैं।
इस इलाके के अनेक परिवारों में गुग्गा नवमी का त्यौहार बड़ी श्रद्धा के साथ मनाया जाता है। बहुत से हिंदू परिवारों में आज भी प्रथा है कि जन्माष्टमी की रात्रि को किसी बड़ी थाली अथवा परात में पानी मिला कच्चा दूध घर के किसी सुरक्षित कोने में रख दिया जाता है। जिसे प्रातः होते ही गुग्गा का स्मरण कर पूरे घर में छिड़का जाता है। ऐसी मान्यता है कि ऐसा करने से पूरे वर्ष भर में नाग देवता की अनुकंपा बनी रहती है और उनके द्वारा कोई भी अप्रिय नहीं होता।
गुग्गा पीर को नागों का देवता के रूप में पूजने की परंपरा को इस उदाहरण से समझा जा सकता है कि उनकी माढी स्थान पर सांपों के बड़े बड़े सुंदर चित्र भी बनाए जाते हैं।
सावन माह के मध्य से भादो माह की शुक्ल पक्ष की दशमी तक जगह-जगह छड़ियाें के मेले का आयोजन किया जाता है। गोगाजी के श्रद्धालु अपनी छड़ियां लेकर आते हैं इन्हें माढी पर चढ़ाते हैं और गोगा जी का आशीर्वाद प्राप्त करते हैं।
छड़ी बांस की एक लंबी मजबूत बल्ली को रंगीन कपड़े लपेटकर सजाते हैं। इस छड़ी के सबसे ऊपर नीले रंग का झंडा, मोर पंख, खजूर या पटेरे का हाथ से बना हवा करने वाला साधारण पंखा बांधा जाता है।
कहते हैं कि युद्ध में शत्रु का मुकाबला करने के लिए गोगा जी ने प्रत्येक घर से एक सैनिक और एक नेजा मांगा था। यह छड़ियां गोगा जी की विजय पताका के निशान के रूप में उनके श्रद्धालु अनुयायियों के मन में गर्व के भाव जगाती हैं।
गोगा जी की जहां-जहां माढी बनी हुई है। उन पर सांप, मोर, घोड़ा व सैनिक वेश में घोड़े पर सवार गोगाजी के चित्र अंकित किए जाते हैं।
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सहारनपुर जनपद
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## – बड़गांव – गांव सावतखेड़ी में दो दिवसीय मेले का आयोजन किया जाता है। श्रद्धालु भक्त माढी पर प्रसाद और निशान चढ़ाते हैं। इस अवसर पर आयोजित दंगल आकर्षण का केंद्र होता है।
## – छुटमलपुर – गोगा वीर की माढी पर आयोजित मेले से पहले क्षेत्र में छड़ी की यात्रा निकाली जाती है। श्रद्धालु भक्त सुबह से ही माढी पर पहुंचना शुरू हो जाते हैं।
##- देवबंद – देवी कुंड पर स्थित माढी पर तीन दिवसीय मेले का आयोजन किया जाता है। गुग्गापीर के प्रतीक नेजे का जुलूस निकाल कर माठी पर लाया जाता है। श्रद्धालु भक्त माढी पर छड़ी और प्रसाद चढ़ाते हैं।
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मुजफ्फरनगर जनपद –
## – महाबलीपुर गांव ( चरथावल ) —
महाबलीपुर में प्राचीन जाहरवीर गोगा माढी पर मेले का आयोजन किया जाता है। श्रद्धालु ढोल नगाड़ों के साथ पवित्र निशांत और प्रसाद चढ़ाकर मन्नतें मांगते हैं कई गांवों के श्रद्धालु यहां माढी पर आकर माथा टेकते हैं।
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## – रोनी हरजीपुर गांव व ## – भमेला गांव
चरथावल ब्लॉक के इन गांवों की प्राचीन गोगा माढी पर मेलों का आयोजन किया जाता है। कई गांवों के श्रद्धालु यहां आकर गोगाजी की माढी पर माथा टेकते हैं और भंडारे का आयोजन करते हैं।
## – दहचंद गांव ( चरथावल )
गोगा माढी पर भव्य मेले लगता है जागरण का आयोजन भी किया जाता है।
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## – पुरकाजी –
जीटी रोड के किनारे लगने वाले मेले में पहुंचकर महिलाएं बच्चे पुरुष छड़ी चढ़ाते हैं। और मेले का आनंद उठाते हैं।
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## दाहौड़ गांव ( खतौली )
दाहौड़ – गंगधाली सिंचाई विभाग की कोठी के पास गोगा जाहरवीर की म्हाडी पर प्रत्येक वर्ष श्रावण मास में तीन दिवसीय मेला लगता है। आसपास के क्षेत्रवासियों सहित दूर-दराज श्रद्धालु गोगा जाहरवीर म्हाडी पर मुबारक छड़ी व प्रसाद चढा कर परिवार की खुशहाली मन्नत मांगते हैं।
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***** शामली जनपद –
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## – तहारपुर गांव ( झिंझाना )
गोगाजी की माढी पर श्रद्धालु छड़ी और प्रसाद चढ़ाने आते हैं।
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***** हरिद्वार जनपद –
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## गांव खजूरी ( रूड़की )
गोगा म्हाड़ी पर मेले का आयोजन किया जाता है।