_____________________________________________________ मुजफ्फरनगर जनपद के १०० किमी के दायरे में गंगा-यमुना की धरती पर स्थित पौराणिक महाभारत क्षेत्र
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बाघ व हाथी स्वछंद विचरते है जहा
राजा जी राष्ट्रीय अभ्यारण्य है यहां
इस क्षेत्र के हरिद्वार बिजनौर कोटद्वार सहारनपुर यमुनानगर आदि जनपदों में शिवालिक पर्वत माला फैली हुई है। गंगा यमुना सहित कई नदियां तथा अनेकों बरसाती नदियां क्षेत्र में बहती हैं। इन क्षेत्रों में जहां घने जंगल है जिनमें अनेकानेक प्रकार के वन्य जीव जंतु, अनेकानेक सरीसर्प, जल में मिलने वाले जंतु , कीट पतंगे और न जाने कितने प्रकार की दुर्लभ वनस्पतियां व औषधियां मिलती है।
इस क्षेत्र में बहने वाली विशाल गंग नहर के किनारे भी कई स्थानों पर घना जंगल है। यहां पर भी बहुत तरह की वनस्पतियां और वन्य जीव जंतु मिलते हैं।
राजाजी राष्ट्रीय वन्य जीव अभयारण्य
गंगा यमुना के इस चित्र में प्राकृतिक सुंदरता से भरपूर गंगा के किनारे तीन अभयारण्य पोला, मोतीचूर और राजाजी को मिलाकर एक बड़े राजाजी राष्ट्रीय अभयारण्य की स्थापना की गई थी। यह यह अभयारण्य हिमालय की तराई, गंगा ओं
के मैदानों और शिवालिक की पहाड़ी श्रेणियो के बीच स्थित है। यह अभयारण्य हाथियों के लिए प्रसिद्ध है। टाइगर रिजर्व होने के से यहां बाघ को भी देखा जा सकता है।
यहां की प्राकृतिक सुंदरता देखने लायक है। गंगा इस नेशनल पार्क के बीच में से होकर बहती है।
देश के बड़े राष्ट्रीय पार्कों में से एक इस राजाजी नेशनल पार्क में वन्यजीव प्रेमियों व पर्यटकों को वन्य जीवन व तरह-तरह की वनस्पतियां देखने को मिलती हैं।
हिमालय की तराई और शिवालिक की पहाड़ियों में पाए जाने वाले असंख्य जीवो व यहां मिलने वाली वनस्पतियों के संरक्षण के लिए इस राजाजी नेशनल पार्क की स्थापना की गई थी।
देश की राजधानी दिल्ली के सबसे पास में स्थित है देश का यह बहुत ही खूबसूरत राष्ट्रीय नेशनल पार्क।
हरिद्वार और ऋषिकेश के निकट लगभग 820वर्गकिलोमीटर क्षेत्र में फैला यह राष्ट्रीय अभयारण्य हिमालय की तराई शिवालिक की पहाड़ियों व गंगा के मैदानों में मिलने वाली विभिन्न प्रकार की वनस्पतियों से घिरा हुआ है।
इस राष्ट्रीय अभयारण्य में विभिन्न स्तनधारी जीव जैसे हिरण सांभर जंगली सूअर नीलगाय बाघ तेंदुए भालू और हाथी को आसानी से देखा जा सकता है। पक्षियों की तो लगभग 180 प्रकार की किस्मो को देखा जा सकता है। सर्दियों के मौसम में इस क्षेत्र में दूर देशों के दुर्लभ प्रवासी पक्षियों को भी देखा जा सकता है। धीरज के साथ प्रयास किया जाए तो इस अभयारण्य में अजगर और कोबरा सांप को भी यहां देखा जा सकता है।
इस राष्ट्रीय अभयारण्य में चीला, मोतीचूर, मोहण्ड, कांसरो, धौलखण्ड जैसे स्थानों से वन जीव प्रेमी और पर्यटक वन्य जीवो को बहुत ही निकट से देख सकते हैं।
हाथी इस नेशनल पार्क में बड़ी संख्या में पाए जाते हैं इसलिए यहां इन्हें आसानी से देखा जा सकता है।
राजाजी नेशनल पार्क में हाथियों के साथ साथ टाइगर को भी देखा जा सकता है। टाइगर रिजर्व होने के कारण यहां बाघ भी पाए जाते हैं। इस नेशनल पार्क के जंगल बाघों के पुरातन वास स्थल रहे हैं। अभी भी यहां पर बाघों की पद चाप और उनकी दहाड़ को सुना जा सकता है।
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हस्तिनापुर वन्य जीव अभयारण्य
यह वह जगह है जहां गंगा नदी ऊंचे पर्वतों से नीचे खुले मैदान में उतर कर धीरे धीरे बहती हुई अभी कुछ दूर आगे ही पहुंचती है। वहीं यह हस्तिनापुर अभयारण्य स्थित है।
यहां हरे भरे प्राकृतिक नजारे हैं। गंगा की लहरों में अठखेलियां करती मछलियां हैं। कुलाचें भरते घास के मैदानों में बारहसिंघा हिरण के झुंड । गंगा की लहरों में उछलती डॉल्फिन। गंगा के किनारे की रेती में धूप सेकते घड़ियाल।
ऐसे और भी बहुत से नजारे यहां देखे जा सकते हैं।
पक्षी प्रेमियों के लिए भी यह अभयारण्य किसी अन्य पक्षी अभयारण्य से कम नहीं है। इस पूरे इलाके में लुप्त प्राय माने जाने वाली ओरिएंटल व्हाइट बैक्ड वल्चर्स, लॉन्ग विल्ड वल्चर्स सहित कई दुर्लभ पक्षी प्रजातियों जैसे सारस क्रेन,
ग्रेटर स्पॉडेट ईगल, स्वैम्प फ्रौलिकॉन, फिन बयां जैसी दुर्लभ प्रजाति की कई किस्मों के पक्षियों की प्रजातियां यहां देखी जा सकती हैं।
सर्दी के मौसम में गंगा किनारे तथा यहां की झीलों में दूर देशों से आए प्रवासी पक्षियों का कलरव सुना जा सकता है।
इन्हीं के पास जैन धर्म और सनातन हिंदू धर्म की हजारों वर्ष पुरानी संस्कृति को साक्षात अनुभव करने यंहा के पौराणिक तीर्थ स्थलो हस्तिनापुर, शुकतीर्थ, गढ़मुक्तेश्वर व ब्रजघाट के अलावा इस इलाके के और भी कई स्थानों में स्थित जैन धर्म और सनातन हिंदू धर्म के पौराणिक मंदिरों के दर्शन करने तथा भारतीय संस्कृति में गहराई तक बसी महाभारत की गाथाएं सुनाती निशानियां यहां मौजूद हैं इन सभी के दर्शन करने यंहा लाखो तीर्थ यात्री प्रति वर्ष आते है।
बताते हैं कि सन 1985 में केंद्र सरकार के एक सचिव
इस इलाके में हस्तिनापुर नहर के किनारे घूम रहे थे। उस समय उनकी नजर यहां विचर रहे एक बारहसिंघा पर पड़ी। क्षेत्र में बारहसिंघा को देख कर उन्होंने यहां के वन अधिकारियों से इस इलाके में मौजूद वन्यजीवों के बारे में जानकारी ली और केंद्र सरकार को इस क्षेत्र के वन जीवन के संरक्षण के लिए प्रस्ताव भेजने के लिए कहा।
हस्तिनापुर अभयारण्य बनाने का मुख्य उद्देश्य बारहसिंघा प्रजाति के दलदली हिरण का संरक्षण करना था। इस अभयारण्य का बनना देशभर में दलदली क्षेत्र के हिरण प्रजाति के संरक्षण का पहला प्रयास था। यदि शीघ्र ही इनका संरक्षण नहीं किया जाता तो अगले कुछ ही वर्षों में इनके लुप्त हो जाने की आशंका थी।
हस्तिनापुर अभयारण्य में मिसरीपुर एक वन पट्टी है। बताया जाता है कि यहां पर वन सन 1955 में लगाया गया था। इस वन पट्टी और बूढ़ी गंगा के बीच के दलदली इलाके में चीतल सांभर पाड़ा नीलगाय जंगली सूअर और दलदली हिरण बारहसिंघा मिलते हैं।
दलदली हिरण बारहसिंगा भारत में अभी तक केवल तीन स्थानों पर ही मिले हैं। हस्तिनापुर अभयारण्य के बूढ़ी गंगा के दलदली इलाके में यह प्रजाति मिलती है।
इस इलाके में वन उपज पटेर जिससे चटाई बनाई जाती है, इतना घना और बड़ी मात्रा में होता है कि शिकारी जीप आदि वाहनों से भी वहां नहीं पहुंच पाते हैं। इसी कारण यह प्रजाति अभी तक यहां बची हुई है।
इस प्रजाति के दलदली हिरण का पता यहां पहली बार सन 1939 के आसपास चला। यहां के ग्रामीणों ने मीरापुर के निकट गांवड़ी झील के पास सांभर जैसे पशु को एक अलग तरह की आवाज निकालते सुना तो उन ग्रामीणों का ध्यान उसके प्रति आकर्षित हुआ। इसी समय के आसपास प्रसिद्ध शिकारी जिम कार्बेट यहां के कलक्टर जान्स्टन के साथ शिकार खेलने मीरापुर आए थे। जिम कार्बेट के सामने से दो मादा दलदली बारहसिंघा निकले तो जिम कार्बेट ने उन्हें तुरंत पहचान लिया।
वन्य जीवन के जानने वाले विशेषज्ञों का मानना है कि गंगा में आती रहने वाली बाढ़ में किसी समय यह पशु बह कर यहां आया होगा और फिर यहां के दलदली इलाके में इसे नया घर मिल गया।
इस दलदली बारह सिंगा हिरन का घर तो दलदली इलाके में होता है लेकिन इसका भोजन वन्य इलाके में मिलता है। लेकिन जब इस इलाके में नई मध्य गंगा नहर बनाई गई तो वह नहर वन्य क्षेत्र और दलदली इलाके के बीच में से बनाई गई इससे इस प्रजाति के हिरन आवास और भोजन पाने का स्थान एक दूसरे से कट गए। इससे प्रकृति के संतुलन के बिगड़ने का काम हुआ।
वन्य जीवन में रुचि रखने वाले एक गैर सरकारी व्यक्ति मेरठ के श्री वाई एम राय ने इस क्षेत्र में अभयारण्य बनाने का प्रस्ताव सरकार को भेजा था। उन्होंने इसके लिए शुकतीर्थ व हस्तिनापुर क्षेत्र में जो मुजफ्फरनगर व मेरठ जिले में पड़ता है वह क्षेत्र अभयारण्य बनाने के लिए बताया था।
सरकार ने हस्तिनापुर के आसपास के जंगलों की विविधता को सहेजने के लिए सन 1986 में उस समय के मेरठ मुजफ्फरनगर गाजियाबाद मुरादाबाद बिजनौर में गंगा के दोनों ओर के खादर क्षेत्र की लगभग 2100 वर्ग किलोमीटर भूमि पर हस्तिनापुर अभयारण्य बनाया गया। अभयारण्य बनाने का उद्देश्य इस क्षेत्र में पाए जाने वाले राष्ट्रीय पक्षी मोर व अन्य पक्षियों की सैकड़ों प्रजातियां तथा यहां पाए जाने वाला दलदली बारहसिंगा हिरन, चीतल, पाड़ा, नीलगाय, काला हिरण, तेंदुआ, जंगली बिल्ली के अलावा भेड़िया भी जो यहां मिलता है।
बंदर, लंगूर, बिज्जू, लकड़बग्घा, साही, खरगोश, जंगली सूअर, ऊदबिलाव, गीदड़, लोमड़ी, काला हिरण आदि वन्य पशु भी यहां है। इसके अतिरिक्त सैकड़ों प्रजाति के पक्षी। सांपों में यहां अजगर, काला नाग, करेत, कोबरा, चूहा सांप, पनिया सांप के अलावा और भी कई प्रजाति के सांप यहां मिलते हैं। इन सबके अलावा यहां पर पाए जाने वाले बड़ी संख्या में जीव जंतुओं की रक्षा एवं उनकी संख्या में वृद्धि हो सकेगी। इस क्षेत्र की बूढ़ी गंगा नदी एवं गंगा नदी में भी मगरमच्छ पाए जाते थे और उनको यहां प्रजनन करते हुए भी देखा गया था।लंगूर और ऊदबिलाव भी यहां पर पाए जाते थे।
यह भी देखा गया था कि इस क्षेत्र में गंगा, बूढ़ी गंगा, मध्य गंगा नहर तथा इस इलाके में कई झीलें भी हैं जो वन्य जंतुओं के लिए अच्छे जल स्रोत के रूप में उपलब्ध है। इस इलाके में किशोरपुर झब्बापुर और जीवनपुर की तीन झीलों के दलदली क्षेत्र में ही मुख्य रूप से बारहसिंघा प्रजाति का दलदली हिरण का वास स्थल है।
यह दलदली हिरण बारहसिंघा ही इस अभयारण्य की विशेषता है। कई प्रकार के सांपों, अजगर, मगरमच्छ, घड़ियाल तथा कछुओं की कई विशिष्ट प्रजातियां भी इस वन्य अभयारण्य में है।
इस क्षेत्र में प्रतिवर्ष शीत ऋतु में बड़ी संख्या में प्रवासी पक्षी आते हैं। इनमें हिमालय के पर्वतीय क्षेत्र के पक्षी ही नहीं अपितु बड़ी संख्या में साइबेरिया तक के प्रवासी पक्षी यहां आते हैं।
यह वन्य जीव अभयारण्य गंगा के दोनों ओर बसा हुआ
होने के कारण इस अभयारण्य में जैव विविधता भी खूब है।
इस अभयारण्य में बूढ़ी गंगा नदी भी बहती है जहां पर घना जंगल भी है। बूढ़ी गंगा के इलाके में ही दलदली हिरण बारहसिंघा विशेष वास स्थल माना जाता है। हमारे देश में मगरमच्छ की 3 प्रजातियां पाई जाती हैं, जिनमें से दो इस हस्तिनापुर अभयारण्य में हैं। सांपों की 13 से अधिक तरह की प्रजातियां इस अभयारण्य में पाई जाती हैं।
हस्तिनापुर अभयारण्य की एक और सबसे बड़ी विशेषता है। गंगा नदी में रामसर साइट भी इस क्षेत्र का हिस्सा है। रामसर साइट गंगा नदी में मिलने वाली राष्ट्रीय जल जीव गांगेय डॉल्फिन का वास स्थल है।
हस्तिनापुर सेंचुरी इन सब वन्यजीवों के साथ अपने भीतर अनेक प्रकार की दुर्लभ प्रजाति के पेड़ पौधों को भी समेटे हुए हैं।
कई प्रकार की बहुमूल्य प्रजाति की वन्य औषधियां भी यहां पर मिलती हैं। इस अभयारण्य में दुर्लभ और दुनिया की बहुमूल्य बेशकीमती लकड़ी माने जाने वाले चंदन के पेड़ भी हैं प्राकृतिक रूप से होने वाले इन वृक्षों की पौधों को बढ़ाने के प्रयास व यहां मिलने वाले चंदन के पेड़ों का संरक्षण वन विभाग करता है।
ऐसी जैव विविधता से यह अभयारण्य भरा हुआ है।
इस इलाके में गंगा की निचली भूमि जिसे स्थानीय भाषा में खादर कहा जाता है और गंगा की ऊंचाई वाली भूमि जिसे स्थानीय भाषा में खोला कहा जाता है तथा दलदली क्षेत्र शामिल है। इस इलाके में मध्य गंगा नहर बहती है। पुराने जंगल तथा पुराने पेड़ तो इस इलाके में मध्य गंगा नहर बनाने व अन्य कारणों से काट दिए गए थे। बाद में सन 1955 के आसपास यहां जंगल में नए पेड़ लगाए गए थे। बाद में जो वन्य भूमि थी वह छोटे-छोटे टुकड़ों में बटी हुई थी।
हस्तिनापुर अभयारण्य देश का एक विशाल अभयारण्य है। इस अभयारण्य का पूर्वी छोर गंगा पार बिजनौर जिले के मंडावर दारानगर जहानाबाद उल्हेडा चांदपुर, तथा धनोरा गजरौला आदि इलाका है। तो गंगा नदी के पश्चिम की ओर मुजफ्फरनगर जनपद के भोकरहेड़ी शुकतीर्थ मोरना रामराज मेरठ जनपद के बहसूमा हस्तिनापुर तो हापुड़ जनपद का आलमगीरपुर आदि तक का इलाका है। इस तरह से मध्य गंगा नहर और गंगा के बीच के भाग में यह अभयारण्य स्थित है।
इस अभयारण्य के बीच में बूढ़ी गंगा भी बहती है।
हस्तिनापुर वन्य जीव अभयारण्य गंगा के दोनों और स्थित होने के कारण इस अभयारण्य का गंगा के पारिस्थितिक तंत्र से गहरा नाता है। यह वन जीव अभयारण्य गंगा के एक बहुत बड़े क्षेत्र को सीधे तौर पर प्रभावित करता है।
इस अभयारण्य को बनाने के लिए सबसे पहला प्रस्ताव देने वाले श्री वाई एम राय ने स्वयं इस क्षेत्र का सर्वेक्षण करते समय उन्होंने यहां कम से कम 25 प्रकार के वन्य पशु लगभग 200 तरह के पक्षी और लगभग 10 प्रकार के सरीसृप प्रजाति के वन्य जीव जंतु यहां देखे थे। श्री वाई एम राय ने ही सबसे पहले यह चेतावनी दी थी कि इस क्षेत्र के दलदली भाग को और यहां पाए जाने वाले दलदली बारहसिंघा हिरण को बचाने के लिए शीघ्र ही जरूरी कदम उठाए जाने चाहिए नहीं तो यह सब लुप्त हो जायेंगे।
पिछले 50 सालों में इस इलाके में लोगों ने रहना शुरू किया। आबादी बढ़ने से भी अवैध शिकार से वन्य पशुओं की संख्या में काफी कमी हुई। राजधानी दिल्ली पास में होने के कारण वहां से भी जब चाहे शिकारी यहां आकर वन्यजीवों का शिकार करते थे। इसके अलावा यहां के जनपदों के राजनीति की दृष्टि से कई प्रभावशाली व्यक्ति भी यहां अपने यार दोस्तों के साथ अवैध शिकार करते थे।
किसी समय इस वन्य क्षेत्र में बाघ भी मिलते थे।
गंगा का तटीय क्षेत्र बहुत उपजाऊ है। यहां की हजारों एकड़ खादर की भूमि पर प्राकृतिक रूप से टांटा, पटेर, फूंस पैदा होते हैं।
गंगा की इस प्राकृतिक उपज, गंगा की बालू रेत, गंगा की मछलियां गंगा की प्राकृतिक संपदा है। गंगा की इस संपदा पर असामाजिक तत्वों और माफियाओं की नजर लगी रहती है। गंगा की इस प्राकृतिक संपदा के दोहन से यहां के वन्य जीवो को बहुत नुकसान होता है। यहां पाए जाने वाले वन्यजीवों पर शिकारियों की नजर लगी रहती है। इन सब गतिविधियों से यहां के वन्य जीवन को बहुत नुकसान पहुंचता है। बढ़ता प्रदूषण भी वन्य जीवो के लिए खतरनाक होता है।
इन सब कारणों से यहां मिलने वाले कई वन्य जीव की प्रजातियां या तो समाप्त हो गई हैं। और कुछ प्रजातियों की संख्या बहुत कम हो गई है।
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० ० ० अमानगढ़ टाइगर रिजर्व ० ० ०
बिजनौर जनपद तीन ओर से सुरक्षित अभयारण्य से घिरा हुआ है। उत्तर प्रदेश के तीन टाइगर रिजर्व में से एक अमानगढ़ टाइगर रिजर्व बिजनौर जनपद में ही है।
अमानगढ़ टाइगर रिजर्व कार्वेट राष्ट्रीय उद्यान से लगा हुआ क्षेत्र है। इस क्षेत्र में बाघ की संख्या अधिक होने पर इस क्षेत्र को टाइगर रिजर्व घोषित किया गया है। लगभग 300 वर्ग किलोमीटर वाला यह वन क्षेत्र पहले कार्बेट पार्क का बफर जोन रहा है।
प्राकृतिक छटा से भरपूर यहां के गाने रमणीक वनों में हाथी के झुंडो व बाघों को स्वच्छंद विचरण करते हुए आसानी से देखा जा सकता है।
प्राकृतिक छटा से भरपूर इस वन्य क्षेत्र में घास के मैदान, घना जंगल, छोटे बड़े धमाल जल स्रोत व जलाशय यहां रहने वाले सभी प्रकार के वन्य प्राणियों के स्वच्छंद विचरण और उनके रहन सहन के सर्वथा अनुकूल वातावरण का सृजन करते हैं।
इस शांत वन्य क्षेत्र की परिस्थितियां वन्यजीवों के लिए सर्वथा अनुकूल है।
कार्बेट पार्क में आने वाले बहुत से पर्यटको का यह वन क्षेत्र आकर्षण का केंद्र रहा है।
प्राकृतिक वनस्पतियों से भरपूर इस वन्य क्षेत्र में साल, शीशम, सागौन, आंवला, रोहिणी और अर्जुन जैसे तमाम प्रकार के विशालकाय वृक्षों की बहुलता है।
बिजनौर के इस अमानगढ़ टाइगर रिजर्व में सांभर, चीतल, जंगली सूअर, काकड़, पाड़ा, लंगूर आदि वन्यजीवों के झुंड आसानी से देखे जा सकते हैं। अक्सर भालू और गुलदार भी यहां देखा जा सकता है। बाघ की अधिकता के लिए तो इसे टाइगर रिजर्व घोषित किया गया है। एशियाई हाथी के झुंड को भी अक्सर यह देखा जा सकता है।
वन्यजीवों के साथ यहां सैकड़ों प्रकार के पक्षियों की प्रजाति भी निवास करती हैं।
इस टाइगर रिजर्व में पीली जलाशय नाम का एक बड़ा जल स्रोत भी है।
कार्बेट नेशनल पार्क इस टाइगर रिजर्व से बिल्कुल सटा हुआ वन क्षेत्र है। कार्बेट नेशनल पार्क में रहने वाले वन्यजीवों का आना जाना भी अमानगढ़ टाइगर रिजर्व में हर दम लगा रहता है।
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हमारे देश का प्रसिद्ध कार्बेट नेशनल पार्क भी इस क्षेत्र के जनपद बिजनौर की सीमा से लगा हुआ है।