बागपत जनपद का पौराणिक एवं ऐतिहासिक दृष्टिकोण से बहुत महत्व है।
महाभारत कालीन बागपत नगर यमुना तट पर स्थित है महाभारत की गाथा समेटे इतिहास की साक्षी यमुना बागपत की धरती का अभिन्न अंग है। यहां की धरती पर लहराती फसलों और लोगों की खुशी और समृद्धि का कारण यमुना से जुड़ा है। यमुना यहां के लोगों की आस्था का केंद्र है उनके जीवन का आधार है।
महाभारत की कई घटनाएं इस जनपद से जुड़ी हुई हैं। मान्यता है कि लाक्षागृह से निकलने के बाद पांडवों ने बागपत के पास यमुना किनारे एक शिवलिंग की स्थापना कर पूजा की थी। वह शिवलिंग आज भी बागपत नगर के यमुना तट पर पक्का घाट मंदिर में विराजमान है। भगवान श्री कृष्ण महाभारत युद्ध से पहले जब संधि प्रस्ताव लेकर हस्तिनापुर जा रहे थे उन्होंने भी एक रात्रि विश्राम कर यहां बिताई थी और भगवान शंकर की पूजा आराधना की थी। यह भी मान्यता है कि इस मंदिर में अश्वत्थामा पूजा करने आते थे।
बागपत नगर के यमुना तट पर स्थित पक्का घाट मंदिर में जलभरी देवी की प्रतिमा भी स्थापित है। बताया जाता है। कि कई सौ साल पहले मंदिर के पुजारी महंत महनवा पंडित एक बार यमुना जी में स्नान कर रहे थे। उस समय उन्हें एक आवाज सुनाई दी कि मुझे यमुना जी से बाहर निकालो । जब महंत जी ने यमुना जी में डुबकी लगाई तो उन्हें एक देवी की प्रतिमा मिली । महंत जी महाराज ने उस देवी प्रतिमा को इस मंदिर में स्थापित कर दिया। मान्यता है कि जो श्रद्धालु सच्चे मन से यहां आकर पूजा अर्चना करता है। उसकी सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं।
पक्का घाट मंदिर में स्थापित श्री राधा कृष्ण जी की प्रतिमा के बारे में बताया जाता है कि कुछ वर्षों पूर्व एक युवक बैलगाड़ी में श्री राधा कृष्ण की प्रतिमा यहां से होते हुए रोहतक ले जा रहा था। रास्ते में रात्रि होने पर बैलगाड़ी ले जा रहा युवक रात्रि विश्राम के लिए यही मंदिर पर रुक गया। जब वह युवक सुबह उठकर आगे जाने की तैयारी करने लगा तो बैल आगे चलने के लिए तैयार नहीं हुए। उस युवक ने बैलों को आगे ले जाने का भरसक प्रयास किया लेकिन वह बैल वहीं पर बैठ गए। उसके बाद उस युवक ने श्री राधा कृष्ण की प्रतिमा को यही मंदिर में ही स्थापित कर दिया। बताया जाता है आज भी वह प्रतिमा मंदिर में स्थापित है। श्रद्धालु भक्त पूजा अर्चना कर उनसे मनोकामना का आशीर्वाद प्राप्त करते हैं।
महाशिवरात्रि के अवसर पर हजारों श्रद्धालु पक्का घाट मंदिर में स्थापित प्राचीन शिवलिंग का जलाभिषेक करते हैं।
गुफा वाले बाबा का मंदिर –
बागपत से 8 किमी की दूरी पर दिल्ली- सहारनपुर हाईवे पर स्थित सरूरपुर गांव से पहले गुफा वाले बाबा का मंदिर है। यह मंदिर लाखों श्रद्धालुओं की अटूट आस्था और श्रद्धा का केंद्र है। मान्यता है कि यहां आने वाले प्रत्येक श्रद्धालु भक्त पर बाबा की कृपा रहती है और उनकी सभी मनोकामनाएं पूरी होती है।
यह मंदिर आज देश के कई प्रांतों में अपनी विशेष पहचान बना चुका है। कई प्रांतों से लाखों की संख्या में श्रद्धालु यहां दर्शन करने के लिए आते हैं। बाबा की पूजा अर्चना करके उनका आशीर्वाद प्राप्त होने की आशा और विश्वास के साथ यहां पर प्रतिदिन हजारों श्रद्धालुओं को मंदिर में दर्शन करने के लिए लंबी कतार में लगे देखा जा सकता है।
इस मंदिर की स्थापना के बारे में बताया जाता है। प्राचीन समय में यह स्थान खांडव वन नाम से प्रसिद्ध था। यहां एक टीला हुआ करता था। जिस के चारों ओर घना वन था। बाबा योगेश्वर नाथ इसी वन में रहते थे। काफी संख्या में वन्य पशु- पक्षी भी इस वन में वास करते थे। बाबा योगेश्वर नाथ जी ने सर्दी- गर्मी, आंधी-तूफान आदि से बचने के लिए वन में एक लंबी गुफा खोद रखी थी। इसी गुफा में रहकर बाबा भगवान का स्मरण और भजन-कीर्तन करते थे। पशु- पक्षियों से भी उन्हें गहरा लगाव था। सप्ताह में एक दिन भिक्षा लेने के लिए वह निकलते थे | भिक्षा के लिए वे किसी के घर के दरवाजे पर नहीं जाते थे बल्कि सड़कों पर भजन कीर्तन करते-करते चलते रहते और रास्ते में ही उनके भक्तों द्वारा भिक्षा दे दी जाती थी। उनके भक्त भिक्षा देने के लिए उनके आने से पहले ही इंतजार में रास्ते में खड़े हो जाया करते थे।
बाबा के आशीर्वाद में बड़ा प्रभाव था। जो भी दुखी पीड़ित व्यक्ति बाबा के दरबार में गया बाबा के आशीर्वाद से उसके दुख, दर्द और कष्ट दूर हो जाते थे। उस समय पशुपालक चरवाहे भी अपने पशुओं को चराने के लिए इसी वन में लाते थे। बताते हैं कि एक दिन आकाश में घने काले बादल छाए हुए थे। बिजली गड़गड़ा रही थी। बाबा को स्वयं अनुभूति हुई की आकाश से ओले गिरने वाले हैं। उन्होंने पशुपालक चरवाहों को पहले ही सचेत करके सभी से अपने पशुओं को वन में एक स्थान पर इकट्ठा करने के लिए कहा। परंतु चरवाहों को ओले गिरने की बात पर यकीन ही नहीं हो रहा था। उसके बाद भी बाबा के कहने पर सभी चरवाहे अपने पशुओं को वन में एक स्थान पर ले गए। बाबा उनके बीच में बैठकर भजन कीर्तन करने लगे और देखते ही देखते आकाश से मोटे मोटे बर्फ के ओले बरसने लगे। धरती के ऊपर ओलों की एक बहुत मोटी परत बिछ गई। लेकिन बाबा की कृपा से एक भी ओला पशुओं को छू भी नहीं सका।
भक्तों की मान्यता है कि आज भी इस स्थान पर ओले पड़ने से किसी प्रकार का कोई नुकसान नहीं होता। ऐसी ही कई चमत्कारी घटनाएं हुई जिससे बाबा के प्रति लोगों की श्रद्धा बढ़ती गई। बड़ी संख्या में लोग बाबा के दर्शन करने के लिए उमड़ने लगे। जिसको भी बाबा के चमत्कार का पता चलता वह उनके दर्शन करने के लिए लालायित रहता। समय के साथ बाबा की लोकप्रियता बढ़ती गई।
बाबा के चोला छोड़ने के बाद ग्रामीणों ने इसी वन में उनकी समाधि बना दी थी। आज के समय में वही स्थान गुफा वाले बाबा का मंदिर के नाम से प्रसिद्ध है। हर रविवार को बड़ी संख्या में श्रद्धालु भक्त यहां पूजा करने के लिए आते हैं प्रत्येक होली व दीपावली पर्व पर यहां बड़ा मेला लगता है बागपत के अलावा उत्तर प्रदेश हरियाणा पंजाब राजस्थान दिल्ली आदि कई प्रदेशों के हजारों की तादाद में श्रद्धालु यहां बाबा के मंदिर एंव समाधि के दर्शन करके माथा टेक कर प्रसाद चढ़ाते हैं
कई कई दिन पहले ही यहां पर होली रे दीपावली मेले की तैयारियां शुरू कर दी जाती हैं दूरदराज के श्रद्धालु अपने-अपने वाहनों बसों और बाइकों पर सवार होकर मंदिर पहुंचते हैं जिस कारण यहां पूरे दिन जाम की स्थिति बन जाती है