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इस के जैसी और धरा इस धरती पर कही नहीं
- वेद – पुराण – महाभारत – गंगा – यमुना – सरस्वती – धर्म – अध्यात्म – संस्कृति – इतिहास – प्रकृति – धन धान्य की धरा
तीर्थटन व् पर्यटन के लिए पौराणिक महाभारत क्षेत्र की जानकारी
इस क्षेत्र में हजारो – लाखो की संख्या में व्यक्ति रोजाना तीर्थ यात्री व पर्यटकों के रूप में आते है
यहां का कण-कण पौराणिक, सांस्कृतिक, धार्मिक, ऐतिहासिक कथा- कहानियों के साथ-साथ त्याग, पराक्रम, स्वाभिमान और प्रणय की कथा – कहानियों से ओतप्रोत है।
पौराणिक, सांस्कृतिक और ऐतिहासिक दृष्टिकोण से अत्यंत महत्वपूर्ण गंगा यमुना की यह धरती पर्यटन का समृद्धशाली केंद्र है।
गंगा यमुना का यह क्षेत्र मुजफ्फरनगर जनपद के चारों ओर के लगभग 100 किलोमीटर के दायरे में फैला हुआ है –
जिसमें उत्तराखंड के हरिद्वार ऋषिकेश देहरादून कोटद्वार आदि के इलाके, हरियाणा में यमुना के दूसरी ओर पश्चिमी तट से लगे जनपद कुरुक्षेत्र, यमुनानगर, अंबाला, करनाल, पानीपत, सोनीपत आदि व उत्तरप्रदेश के गंगा पार के बिजनौर,संभल,चंदौसी,अमरोहा, जे पी नगर, मुरादाबाद आदि व गंगा-यमुना के दोआब के मुजफ्फरनगर सहित सहारनपुर,
,शामली,बागपत,मेरठ, गाजियाबाद, नोएडा, बुलंदशहर आदि के साथ इस दायरे में राजधानी दिल्ली भी आ जाती है।
इन सब जनपदों में अनेकानेक ऐसे स्थल है जिनका विभिन्न पुराणों में वर्णन है। अनेक ऐसे स्थल है जो पौराणिक व ऐतिहासिक स्मृतियों का भंडार अपने भीतर संजोए हुए हैं।
यह सबसे पवित्र गंगा – यमुना व लुप्त सरस्वती नदी की भूमि है। गंगा व यमुना यही ऊचे हिम पर्वतों – पहाड़ो से नीचे उतर कर विशाल समतल भूमि में प्रवेश करती है यह वह भूमि है जिस पर पतित -पाविनी माँ गंगा का सानिध्य सबसे पहले सबको सुलभता से प्राप्त होता है। यह गंगा – यमुना के बीच का ढेट उत्तरी दोआब इस धरती की सबसे उपजाऊ भूमि है। ऐसी बहार वैविध्य दुनिया में और कही नहीं है। सब ऒर अनंत हरियाली , लहलाती फसले , खेतो का महासागर , जगह – जगह आम के व फलो के बाग़ गंगा – यमुना से यह भूखण्ड हरीतिमा और संपनता से शोभायमान है।
ऐसी भूमि जिसका पौराणिक व ऐतिहासिक महत्व है रामायण व महभारत भारतीय धर्म और संस्कृति के प्राण है।
सम्पूर्ण महाभारत तो यही गंगा -यमुना के दोनों तटों की भूमि पर ही घटित हुआ था।
महर्षि वेद व्यास ने इसी क्षेत्र से संबधित महाभारत के प्रसिद्ध ग्रन्थ की रचना की।
माँ गंगा व यमुना महाभारत के तमाम घटनाओंं की गवाह है।
महाभारत महाकाव्य इस क्षेत्र की पहचान है
जिसके बारे में कहा गया है –
महाभारत में जो कहा गया है वही अन्यत्र है जो इसमें नहीं है वह कही नहीं है
यदि हास्ति तदन्यत्र यन्ने हास्ति न तत् क्वचित्
महाभारत की यह भूमि मुज़फ्फरनगर जनपद में व इसके चारो ऒर के जनपदों में स्थित है।
ये सभी जनपद उत्तर प्रदेश , हरियाणा , उत्तराखंड व् दिल्ली राज्यों में स्थित है
महाभारत की तमाम घटनाओ कथा प्रसंगो के अनेको स्मृतिस्थल आज भी यहां पर है।
हस्तिनापुर , कुरुक्षेत्र , हरिद्वार, इन्द्रप्रस्थ (दिल्ली) , शुकतीर्थ ,बरनावा , परीक्षीगढ़ , विदुरकुटी आदि प्रमुख स्थान व अनेकानेक अन्य स्थान यहां पर हैं।
इस क्षेत्र के कण कण में महाभारत महाकाव्य समाया हुआ है।
महाभारत पुराण तो इस क्षेत्र की पहचान है ही इसके अलावा और भी बहुत कुछ इस क्षेत्र में है – – –
इस भूमि का धार्मिक, आध्यात्मिक , ऐतिहासिक, सांस्कृतिक, आर्थिक महत्व है।
यह भारत में योग विद्या का बड़ा केंद्र है, यहां सदा नीरा नदियां है, घने जंगल, पहाड़िया, वन्य जीव है। जैविक विविधता है। शास्त्रीय संगीत में किराना घराना व अडरजा घराना की भूमि है। देश की राजनीति में भी यहां का योगदान है। हरित क्रांति की अगवा भूमि है। बड़ी संख्या में छोटे व बड़े उद्योग हैं, दस्तकारी, शिल्प व हैंडलूम के लिए भी देश विदेश में प्रसिद्ध है। खान पान में भी पीछे नहीं है। यहां के छोटी उम्र के खिलाड़ी भी देश के लिए सोने चांदी के तमगे जीत कर देश का मान बढ़ा रहे हैं, क्रिकेट, शूटिंग, कुश्ती , कबड्डी आदि खेलों में कई बड़े खिलाड़ी देश-विदेश में जिनका नाम है।
गंगा जमुनी संस्कृति सबसे अधिक यही देखने को मिलेगी।
और बात तो छोड़िए दंगा फसाद व अपराधों में भी देश भर की सुर्खियों में रहता है।
=यहां की एक और पहचान है –
० खांड का कटोरा कहा जाता है इस भूमि को
यह मिठास की धरती है
दुनिया को भारत की सौगात है गन्ना। मीठा गन्ना यहां की पहचान है।
चारों ओर दूर तक लहराते गन्ने के खेत, मीठे रस से भरी ऊंचे ऊंचे गन्नों का घना जंगल हो जैसे।
गन्ना यहां पौराणिक काल से ही उगाया जा रहा है।
पुराणों, रामायण, महाभारत पुराण में भी गन्ना का वर्णन है।
० जैन धर्म के प्रथम तीर्थंकर भगवान ऋषभदेव ने प्रथम आहार गन्ने के रस के रूप में यही हस्तिनापुर में ही लिया था।
-गन्ने से बनने वाले गुड -खांड -बताशे -मिठाई आदि का हमारी संस्कृति में बहुत ही महत्वपूर्ण स्थान है।
-गंगा यमुना के दोआब में अर्थव्यवस्था की रीढ़ है गन्ना।
-पश्चिमी उत्तर प्रदेश की राजनीति में गन्ने की अहम भूमिका है।
० यह गंगा जमुना के जल से सिंचित भूमि है। यहां का पानी भी मीठा है, यहां पुरातन काल से भूमि में संचित है है शीतल और मीठा पानी।
० हमारे देश का नाम भारतवर्ष पडने का संबंध भी इस क्षेत्र से है। इस प्रसंग में दो वर्णन है –
० जैन धर्म के प्रथम तीर्थंकर भगवान आदिनाथ के बड़े पुत्र थे भरत। इन्हीं चक्रवर्ती सम्राट भरत के नाम से हमारे देश का नाम भारतवर्ष पड़ा।
पूरी जैन परंपरा और विष्णु पुराण, भागवत पुराण, लिंग पुराण में वर्णन है कि समुद्र से लेकर हिमालय तक फैले इस देश का नाम ऋषभदेव के पुत्र भरत के नाम पर भारतवर्ष है।
० यमुना के पश्चिमी तट का विस्तृत भू क्षेत्र अत्यंत पावन भूमि है। इस पावन भूमि पर महाभारत काल तक पुण्य सलिला सरस्वती की प्रचुर जल से संपन्न महा धारा बहती थी।
ब्रह्मा जी , अन्यान्य देवताओं व ऋषि यों ने यहां अनेकानेक यज्ञ किए, तपस्या की और उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर ब्रह्मा जी ने उन्हें वरदान दिए तथा उनके कहने पर यहां पर आज भी वास कर रहे हैं।
० सरस्वती नदी के तट पर ऋषि गण अपने आश्रमों में सहस्रों शिष्यों के साथ रहते थे।
सरस्वती नदी के तटों पर बैठकर ऋषि यों ने वेदों की ऋचाओं की रचना की।
सरस्वती नदी के तटों पर ही सर्वप्रथम वेद की ऋचाओ का गान किया।
सरस्वती नदी के किनारे ही उच्च कोटि के सूक्त लिखे गए।
ऋग्वेद में भारत की प्रमुख नदियों के बारे में बताते हुए सबसे अधिक मंत्रों से सरस्वती नदी की वंदना की गई है
इसकी महिमा गाई गई है।
० महाराजा कुरु ने यही पावन सरस्वती नदी के तट पर सबसे पहले हल चलाकर खेती करना शुरू किया था।
पुराणों में उल्लेख आता है कि इस भूमि मैं किया हुआ कोई भी शुभ कार्य कई गुनी वृद्धि को प्राप्त होता है।
सरस्वती नदी के तट से ही कुरुक्षेत्र को भारतीय जनमानस में इतना बड़ा तीर्थ माना गया है।
० यही यमुना की रेती में भगवान वेद व्यास का जन्म हुआ था। उन्होंने ही एक वेद को चार भागों में विभक्त किया था।
भगवान वेदव्यास ने ही १८ पुराण और महाभारत पुराण का निर्माण किया था।
० भारत में तीन चीजें सबसे श्रेष्ठ हैं —–
-गंगा — गीता — गायत्री
–गंगा पर्वतों से यही मैदान में प्रवेश करती है।
—गीता का संदेश श्री कृष्ण ने अर्जुन को यही सुनाया था।
– – -गायत्री मंत्र की रचना करने वाले महर्षि विश्वामित्र का आश्रम यही था।
० हमारे देश को भारतवर्ष नाम देने वाले भरत का संबंध भी इस क्षेत्र से है —-
–जैन धर्म के प्रथम तीर्थंकर भगवान आदिनाथ इन्हीं के बड़े पुत्र महाराजा भरत थे।
समुद्र से हिमालय तक धरती के इस विशाल भूखंड हमारे देश भारतवर्ष का नाम इन्हीं चक्रवर्ती सम्राट भरत के नाम पर भारतवर्ष पड़ा।
पूरी जैन परंपरा और विष्णु पुराण, भागवत पुराण, लिंग पुराण मी वर्णन है कि समुद्र से लेकर हिमालय तक फैले इस देश का नाम ऋषभदेव के पुत्र भरत के नाम पर भारतवर्ष है।
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महाभारत पुराण में वर्णन है कि इस देश का नाम भारतवर्ष शकुंतला व महाराजा दुष्यंत के पुत्र भरत के नाम पर इस देश का नाम भारत है ।
ये ही वह भरत है जो बाल्यकाल में महर्षि कन्व के आश्रम में सिहों के साथ खेलते थे। खेल खेल में सिहो को आश्रम के पेड़ों से बांध देते थे। सिंहों के मुंह में हाथ डाल कर उनके दांत गिना करते थे। हस्तिनापुर के इन्हीं प्रतापी महाराजा भरत के नाम पर इस देश का नाम भारत है।
० गंगा महाराजा भागीरथ की आराधना पर इस पृथ्वी पर आई। पहाड़ों से यही के मैदान में गंगा उतरी थी।
इसी धरा पर आगे आगे महाराजा भगीरथ के दिव्य रथ के पीछे पीछे चलती हुई गंगा शिव की जटाओं जैसे पर्वतों से यही विशाल सपाट मैदान में उतरी थी। जो इस संसार की सबसे उपजाऊ भूमि कही जाती है।
(गंगा से ही यह भूमि संसार की सबसे उपजाऊ भूमि बनी)
० भगवान बुद्ध भी इस क्षेत्र में आए थे और यहां उन्होंने प्रवचन भी दिए। भगवान बुद्ध के चरणों से यह भूमि पवित्र हुई है। भगवान बुद्ध ने इस क्षेत्र में लंबे समय तक प्रवास किया था।
० जहां जहां भगवान बुद्ध के चरण पड़े वहां वहां स्मृति निर्माण होते गए।
० इस क्षेत्र में कई स्थानों पर बौद्ध स्तूपो व श्रमण स्थली के अवशेष मिले हैं
० रामायण से भी नाता है इस क्षेत्र का –
भगवान राम तीर्थों की यात्रा में यहां भी आए थे।
पुराणों में शास्त्रों में वर्णन है कि भगवान राम अपनी तीर्थों की यात्रा में हरिद्वार -कुरुक्षेत्र व हस्तिनापुर आए थे। श्री राम ने इन तीर्थों का दर्शन किया था।
रावण और कुंभकरण का जन्म भी यही हुआ था। रावण के पिता विश्वश्रवा आश्रम बिसरख में था। यही रावण का जन्म हुआ था।
रावण की पत्नी मंदोदरी का संबंध मेरठ से है। मेरठ मैदानों की नगरी थी। इन्हीं मय दानव की पुत्री मंदोदरी थी।
बागपत के बालोनी मैं हिंडन नदी के तट पर महर्षि वाल्मीकि का आश्रम था। देवी सीता भगवान राम के द्वारा दिए हुए वनवास के समय यहां वाल्मीकि आश्रम में रही थी। लव लव कुश का जन्म भी यही हुआ था। ऐसी यहां की मान्यता है।
बिजनौर के सीता वनी को भी लव कुश का जन्म स्थान कहा जाता है। देवी सीता वनवास के समय यहां रही थी ऐसी मान्यता है।
लक्ष्मण झूला (ऋषिकेश के पास) में श्री राम के भाई लक्ष्मण जी ने यहां तपस्या की थी। यह है लक्ष्मण जी की तपोभूमि है।
कैथल (हरियाणा) को पुराणों में कपि स्थल के नाम से जाना जाता है। यह हनुमान जी की भूमि है।
o-हस्तिनापुर तो मुजफ्फरनगर जनपद की सीमा पर ही स्थित है तथा कुरुक्षेत्र की विस्तृत युद्धभूमि जहां महाभारत का संपूर्ण युद्ध लड़ा गया यमुना नदी के पश्चिमी तरफ फैली है।
० इस धरा से भगवान श्री कृष्ण का अटूट संबंध है।
भगवान श्री कृष्ण का जन्म मथुरा में हुआ था। सभी बाल लीलाएं उन्होंने बृज धाम में की बाद में श्री कृष्ण द्वारका चले गए और वहां श्री कृष्ण राजाधिराज के रूप में रहे।
ब्रज धाम व द्वारका के अलावा भगवान श्री कृष्ण का सबसे अधिक संबंध इसी क्षेत्र से रहा। अनेकों बार श्री कृष्ण यहां आए।
यहां से ही श्री कृष्ण योगेश्वर, सखा, भक्तों के भगवान, राजनीतिज्ञ, कूटनीतिज्ञ के रूप में जाने गए।
द्रौपदी की करुण पुकार पर श्री कृष्ण ने गुप्त रूप से भरी सभा में उसकी लाज बचाई थी। पांडवों के दूत बनकर हस्तिनापुर आए। दुर्योधन के ५६ भोग को त्याग कर श्री कृष्ण ने विदुर जी के घर साग का भोजन इसी धरा पर किया था।
पांडवों के हितेषी सखा – – जब भी पांडवों पर कोई संकट आया या उन्हें श्री कृष्ण की सलाह की आवश्यकता हुई या पांडवों ने श्री कृष्ण का जब भी स्मरण किया उसी समय श्री कृष्ण पांडवों के साथ खड़े मिले।
पांडवों पर कोई संकट आने से पहले ही श्री कृष्ण ने उस संकट को पांडवों से दूर कर दिया।
अर्जुन के परम मित्र सखा। श्री कृष्ण ने यही अर्जुन का रथ हांका।
महाभारत के रण क्षेत्र में बंधु बांधुवों को सामने खड़ा देख कर मोह ग्रस्त हुए अर्जुन को गीता का संदेश इसी धरा पर सुनाया था।
० श्री कृष्ण ने इस धरा पर ही अपने विराट रूप के दो बार दर्शन कराए थे।
एक बार हस्तिनापुर की कौरव सभा में अपने विराट भयंकर स्वरूप के दर्शन कराए थे। जिसमें समस्त कौरवी सेना उनके मुख में समा रही थी।
दूसरी बार श्री कृष्ण ने अपने विराट स्वरूप के दर्शन कुरुक्षेत्र में अर्जुन को गीता का संदेश सुनाने के समय कराए थे।
० हस्तिनापुर तो मुजफ्फरनगर जनपद की सीमा पर ही स्थित है तथा कुरुक्षेत्र की विस्तृत युद्ध भूमि जहां महाभारत का संपूर्ण युद्ध लड़ा गया, यमुना नदी के पश्चिमी तरफ फैली है। की
हस्तिनापुर से कुरुक्षेत्र की युद्धभूमि में जाने का मार्ग मुजफ्फरनगर और शामली जनपदों की भूमि से होकर ही जाता था। ऐसी मान्यता है कि मुजफ्फरनगर के खरड़ के अक्षत वन तथा शामली के हनुमान टिल्ला वे स्थान है जहां श्री कृष्ण ने हस्तिनापुर से कुरुक्षेत्र जाते समय मार्ग में कुछ समय रुक कर विश्राम किया था।
इस भूमि पर श्री कृष्ण के चरण पड़े तथा श्री कृष्ण के रथ के पहियों की लकीरें यहां की धरती पर खींची हुई है।
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और तो और गांधारी ने यही श्री कृष्ण को श्राप भी दिया था और जिसे श्री कृष्ण ने सहर्ष स्वीकार भी किया था।
महाभारत के युद्ध में कौरवों के संपूर्ण नाश होने पर कुपित गांधारी ने श्री कृष्ण को श्राप दिया की –
जैसे कौरवों के वंश का समूल नाश हो गया है वैसे ही श्री कृष्ण के यादव कुल का भी समूल नाश हो जाए।
और यह श्राप फलीभूत भी हुआ था।
० पुराणों के अनुसार यह सारा क्षेत्र तपोभूमि है।
यहां के वनों में ऋषि मुनियों के आश्रम थे जहां वे तप करते थे और विद्यार्थियों को शिक्षा प्रदान करते थे।
० गंगा किनारे के वन आनंदवन कहा जाता था
यही शुभ तीर्थ है। यही शुकदेव महाराज ने राजा परीक्षित को सर्वप्रथम सात दिन तक भागवत कथा सुनाई थी। इसी समय भागवत कथा को सुनने यहां ८८ हजार ऋषि आए थे।
० हरिद्वार में सप्त ऋषि यों की तपोभूमि है सप्त सरोवर नामक स्थान यहां आज भी गंगा कई धाराओं में होकर बहती है।
० यमुना किनारे खं डारी वन था जहां अनेक ऋषि मुनि तप किया करते थे। यह स्थान आजकल बागपत जिले में है।
० इंद्रप्रस्थ (दिल्ली) इसे ही पांडवों ने अपनी राजधानी बनाया था। इसके पास ही खांडव वन था जिसे अर्जुन व श्री कृष्ण ने अग्नि देव के लिए जलाया था।
० जहां आज प्रसिद्ध पुरा महादेव मंदिर है यहां कजरी वन था। परशुराम के पिता महर्षि जमदग्नि अपनी पत्नी रेणुका के साथ इसी कजरी वन में रहते थे।
० हस्तिनापुर शांतिवन (सहेतूक या सहस्त्राभ्र वन ) कहलाता था।
० मालिनी नदी के तट पर महर्षि कण्व का आश्रम था। यही शकुंतला व दुष्यंत के पुत्र भरत सिंह व बाघों के साथ खेलते थे।
० आज का देवबंद देवी का वन कहा जाता है। देवी निवास करती है यहां।
० श्रृंगी ऋषि का आश्रम परीक्षित गढ़ में था। इन्हीं के पुत्र ने महाराजा परीक्षित को 7 दिन बाद तक्षक नाग के काटने से मृत्यु होने का श्राप दिया था।
० जाबालि ऋषि जहां तप करते थे वह स्थान जेवर (गौतम बुध नगर -नोएडा) मैं था।
० रावण के पिता विश्वेश्रवा का आश्रम आज के बिसरख में था। यही रावण का जन्म हुआ था।
० धौम्य ऋषि का आश्रम जलालाबाद (शामली) मैं था। यहां धौम्य ऋषि अपने आश्रम में विद्यार्थियों को पढ़ाते थे। इन्हीं के शिष्य आरुणि थे। वही आरुणि जो गुरु की आज्ञा पूरी करने के लिए खेत की मेड पर लेट कर तेज वर्षा के बहते पानी से गुरु के खेतों की रक्षा की थी।
० करण वास में भृगु क्षेत्र में ऋषि यों के आश्रम थे।
० महर्षि पराशर ने कपालमोचन में तपस्या की थी।
० महर्षि वाल्मीकि की तपोभूमि व उनका आश्रम बालोनी (बागपत) मैं हिंडन नदी के किनारे था। यही सीता जी वनवास में रही थी। यही लव कुश का जन्म हुआ था।
० गगोल -मेरठ यहां महर्षि विश्वामित्र ने यज्ञ किया था।
० हरिद्वार -ऋषिकेश तो तपोभूमि के लिए प्रसिद्ध है। यहां अनेकों ऋषि यों मुनियों ने तप किए हैं। इनका पुराणों में वर्णन है।
० कुरुक्षेत्र मैं सरस्वती नदी के तट पर बड़े-बड़े ऋषि तपस्या करते थे। यहां महर्षि वशिष्ठ, महर्षि विश्वामित्र आदि ऋषि यों के आश्रम थे जहां वे वेदों की ऋचा ओं का गान करते थे।
०-पौराणिक काल में सप्त ऋषि, ऋषि वाल्मीकि, शुकदेव महाराज, मैत्रेय, पराशर, श्रृंगी, शमीक आदि बड़े-बड़े ऋषि मुनियों कि यह तपस्थली रही है यह धरा।
० सनातन धर्म के पुराणों में शास्त्रों के अनुसार जिनका नित्य प्रातः काल स्मरण करना चाहिए, जिनके स्मरण मात्र से मनुष्य का कल्याण होता है तथा तीर्थ स्थान जिन का दर्शन करना चाहिए। इनमें से बहुत से दिव्य तीर्थ व महान व्यक्ति यहां से संबंधित है – – – –
– हमारी सनातन संस्कृति में ७ मोक्ष पूरियां बताई गई हैं जिनके दर्शन से मोक्ष प्राप्त होता है उनमें से एक पुरी -मायापुरी (हरिद्वार) है।
-सात महा पवित्र पुण्य नदियां हैं जिन का स्मरण रोजाना स्नान करते समय श्रद्धालु करते हैं उनमें गंगा यमुना यहां प्रवाहित हैं व लुप्त सरस्वती वैदिक काल में यहां बहती थी।
-सप्त क्षेत्रों में से कुरुक्षेत्र तथा तीर्थों में कर्तव्य भेद में बताया गया है किस तीर्थ में क्या करना चाहिए उसमें कुरुक्षेत्र में दान करने का महत्व बताया गया है।
-जिन तीर्थों में वास करने और मरने से भी मनुष्य की मुक्ति होने का वर्णन शास्त्रों में मिलता है उनमें से एक कुरुक्षेत्र भी है। इसलिए यहां कुरुक्षेत्र में मृत्यु होने वालों की अस्थि अवशेषों को गंगा आदि पवित्र स्थानों में प्रवाहित नहीं किया जाता है।
-५१ सिद्ध क्षेत्र हैं उनमें – कुरुक्षेत्र, कुब्जाम्रक (ऋषिकेश ), हस्तिनापुर, हरिद्वार यहां है।
-अष्टोत्तर -शत दिव्य शक्ति स्थानों में -मायापुरी (हरिद्वार) मैं कुमारी, कुब्जाम्रक (ऋषिकेश ) मैं । त्रि संध्या, गंगा द्वार (हरिद्वार) मैं रतिप्रिया यहां है।
-अष्टोत्तर-शत दिव्य विष्णु स्थानों में -हरिद्वार में जगतपति यहां है।
-अष्टोत्तर-शत दिव्य शिव क्षेत्रों में -कुरुक्षेत्र मे वामनेश्वर रूप में यहां हैं।
-प्रातः स्मरणीय सप्त चिरंजीवी -अश्वत्थामा, व्यास, परशुराम हनुमान जी का संबंध भी यहां से है।
– प्रातः स्मरणीय पंच कुमारी में -द्रौपदी, कुंती मंदोदरी का संबंध भी इस क्षेत्र से है।
-भगवान विष्णु के जो परम भक्त हैं उनमें -व्यास, शुकदेव , भीष्म व अर्जुन भी इस क्षेत्र से हैं।
-दक्ष व युधिष्ठिर को भी प्रातः स्मरणीय माना जाता है।
-शास्त्रों में सप्त सरस्वती बताई गई है उनमें कुरुक्षेत्र में ओघवती और हरिद्वार में सुरेणु यहां है।
-श्राद्ध के लिए जो प्रधान तीर्थ स्थान बताए गए हैं उनमें से हरिद्वार में हर की पेडी व कुरुक्षेत्र में पथु दक(पेहवा) यह प्रधान श्राद्ध स्थान इस क्षेत्र में है।
-समुद्र मंथन से निकले अमृत कलश की अमृत की बूंदें इस धरती पर चार स्थानों पर गिरी थी उनमें से एक स्थान हरिद्वार यही है। इसी से कुंभ स्नान के चार स्थानों में हरिद्वार का कुंभ का महापर्व भी यहां होता है।
-जगतगुरु श्री वल्लभाचार्य जी की जो ८४ बैठकें है जहां महाप्रभु वल्लभाचार्य ने श्रीमद्भागवत का पारायण किया था उनमें एक स्थान हरिद्वार के कनखल में है।
-भारतीय उपमहाद्वीप में देवी सती के ५१ शक्तिपीठ है । इन ५१ शक्तिपीठों का संबंध भी हरिद्वार के कनखल से है
आदि शक्ति संपूर्ण धरती पर अपने भक्तों पर करुणा बरसा रही हैं। यही आदि शक्ति भगवती जगत की सभी व्यवस्थाओं का संचालन करती है
हमारी संस्कृति में इन शक्तिपीठों का विशेष महत्व है
इन्हीं आदि शक्ति से हरिद्वार आदि शक्ति की भूमि है
इन्हीं से हरिद्वार क्षेत्र तांत्रिक भूमि भी है
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० इस क्षेत्र का सिख मत में बहुत महत्वपूर्ण स्थान है – –
सभी सिख गुरुओं के चरणों से यहां की धरती धन्य हुई है। उनकी स्मृति ने यहां कई स्थानों पर उनकी स्मृति में भव्य गुरुद्वारे बने हुए हैं।
सिख पंथ के पंज प्यारों में एक भाई धर्म दास यही के हस्तिनापुर सैफ पुर के निवासी थे।
० सूफी मत की दरगाहे —
इस क्षेत्र में मुस्लिम सूफी मत की कई महत्वपूर्ण दरगाहैं है।
पिरान कलियर के बारे में कहा जाता है कि यहां एक और पीर हो गए होते तो इसका महत्व मक्का जितना हो गया होता।
पानीपत में बू अली कलंदर की मजार उन दरगाहओं मैं एक है जिनके दर्शन भी उतने ही महत्वपूर्ण समझे जाते हैं जितने अजमेर की दरगाह शरीफ के दर्शन करने के।
दिल्ली के हजरत निजामुद्दीन औलिया की मजार
गंगोह के हजरत शेख अब्दुल कद्दूस कुतबे आलम का मजार।
यहां और भी कई महत्वपूर्ण दरगाहैं हैं।
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० ईसाई धर्म का बहुत ही प्रसिद्ध गिरजाघर यहां सरधना में है।
० भगवान श्री कृष्ण इस धरा धाम से अपने गोलोक को पधार गए थे। हस्तिनापुर का राज्य अपने पौत्र परीक्षित को सौंप कर पांचो पांडव द्रोपती सहित स्वर्गारोहण को चले गए थे।
इसके बाद सबसे पहले कलयुग का प्रवेश यही इसी क्षेत्र की धरती पर हुआ था।
महाराजा परीक्षित ने सबसे पहले कलयुग को यहां देखा और उन्होंने कलयुग को अपने राज्य से बाहर चले जाने के लिए कहा।
कलयुग के यह कहने पर की सारी पृथ्वी पर तो आपका ही राज्य है। मुझे आप रहने का स्थान बताइए जहां मैं रह सकूं।
महाराजा परीक्षित ने कलयुग को रहने के जो स्थान बताएं उनमें स्वर्ण भी एक स्थान था।
महाराजा परीक्षित ने स्वर्ण का मुकुट धारण कर रखा था। कलयुग के प्रभाव से महाराजा परीक्षित ने ध्यान में बैठे हुए ऋषि के गले में मरा हुआ सांप डाल दिया।
ऋषि के पुत्र श्रृंगी ऋषि ने क्रोध में महाराजा परीक्षित को ७ दिन बाद तक्षक नाग द्वारा डसने का श्राप दे दिया।
७ दिन बाद तक्षक नाग से डसने का श्राप सुनकर राजा परीक्षित यहां गंगा तट पर शुक तीर्थ मैं आ गए।
राजा परीक्षित को मोक्ष की प्राप्ति के लिए शुकदेव महाराज ने यही गंगा तट पर वटवृक्ष के नीचे बैठकर सात दिन तक श्रीमद् भागवत कथा सुनाई थी।
उस समय इस भागवत कथा को सुनने के लिए इस स्थान
पर८८ हजार ऋषि मुनि पधारे थे।
जिस वटवृक्ष के नीचे बैठ कर शुकदेव महाराज ने राजा परीक्षित को भागवत की कथा सुनाई थी, वह वटवृक्ष आज भी शुक् तीर्थ में है।
श्रीमद् भागवत को भगवान श्री कृष्ण का साक्षात स्वरूप माना जाता है।
सात दिन में पूरी श्रीमद् भागवत कथा सुनाने की भागवत सप्ताह की परंपरा आज भी विद्यमान है।
देश और दुनिया में अनेकों वक्ताओं द्वारा भागवत सप्ताह कथा के छोटे व भव्य आयोजन हर रोज आज भीहोते रहते हैं।
० हरिद्वार की हर की पैड़ी व गंगा जी की आरती इस क्षेत्र की ही पहचान नहीं भारत की भी पहचान है।
हरिद्वार सनातन हिंदू धर्म के सबसे बड़े तीर्थों में से एक सबसे बड़ा तीर्थ है।
पुराण प्रसिद्ध हरिद्वार ऋषि मुनियों की तपोभूमि है।
पुराणों में इसके महत्व का विस्तार से वर्णन है।
ब्रह्मा, विष्णु शिव यहां सदैव निवास करते हैं। सब तीर्थों का फल यहां स्नान-दान-पूजा व दर्शन करने से प्राप्त हो जाता है।
कल कल निनाद करती हुई गंगा यहां से ही पहाड़ों से आगे मैदान में प्रवेश करती है।
हरिद्वार में अनेकों पुराण प्रसिद्ध स्थान व मंदिर है।
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० गंगा-जमुनी तहजीब दुनिया भर में मशहूर है।
गंगा -यमुना इन दोनों नदियों की गोद में पलती है गंगा जमुनी तहजीब। एक हिंदू -मुसलमानी तहजीब जो गंगा-जमुनी तहजीब कहलाती है।
अगर किसी को गंगा -जमुनी संस्कृति देखनी है तो यही इस क्षेत्र के गंगा यमुना के दोआब में हर कहीं देखने को मिल जाएगी।
००० ००० ०००
इस भूभाग की एक और पहचान है –
यह भूभाग गंगा यमुना वे अन्य नदियों से तो हरा भरा है ही लेकिन यहां गंगा व यमुना से निकाली गई कई नहरे भी है जो इस पूरे भू भाग को तृप्त करती है।
इस क्षेत्र में गंगा वह यमुना की नहरो व उनकी मुख्य शाखाओं व उप शाखाओं का जाल सा बिछा हुआ है।
इनके बिना इस भूभाग के हरियाली के सागर के रूप में कल्पना भी नहीं की जा सकती है। इन नहरों से यह भूभाग हरा भरा और धन-धान्य से भरपूर है।
यहां विशाल व मनोरम गंग नहर है
उस जमाने की अजूबा थी यह गंग नहर।
गंग नहर के निर्माण की विशाल परियोजना का विचार काटले का था।
गंग नहर के निर्माण में कई अजूबे भी हैं जो यहां रुड़की के पास गंग नहर पर देखे जा सकते हैं। यही एक स्थान पर नीचे सोनाली नदी बह रही है और उसके ऊपर से विशाल गंग नहर गुजर रही है।
सड़क मार्ग से गंग नहर के साथ साथ यात्रा का आनंद भी उठाया जा सकता है।
गंग नहर के साथ-साथ चौधरी चरण सिंह कांवड़ मार्ग व आगे रुड़की में गंग नहर के साथ ही काफी दूर तक सड़क बनी हुई है।
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यह वह धरती है जहां बिना किसी प्रयास के मांडी जैसा खजाना भी मिल जाता है।
मुजफ्फरनगर जनपद के मांडी गांव में खेत की ऊपरी परत एक सार करते समय एक ही स्थान पर हड़प्पा कालीन सोने के आभूषणों व सोने से बनी हुई अन्य चीजों का एक बहुत बड़ा खजाना मिला था।
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यह क्षेत्र आम की पैदावार के लिए देश ही नहीं विदेशों में भी प्रसिद्ध है।
इस क्षेत्र की आम की कुछ उम्दा प्रजातियों के लिए देशभर में अपनी पहचान है।
यहां के मशहूर रटोल, दशहरी, मलका, चौसा, लंगड़ा, गुलाब जामुन आदि प्रजाति के आम दूर-दूर तक प्रसिद्ध है। इनका विदेशों में भी निर्यात होता है।
हमारे देश में सैकड़ों प्रकार की आम की किस्में मिलती है। उनमें से अधिकांश किस्मों का इजाद स्थल पश्चिमी उत्तर प्रदेश का यही क्षेत्र है।
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यही इसी क्षेत्र के संभल में कलयुग के अंत में भगवान विष्णु का काल्कि अवतार होगा।
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यही है मेरठ की क्रांति धरा
मेरठ से ही सन 1857 मैं क्रांति की चिंगारी उठी जो बाद में सारे हिंदुस्तान में गांवो के गली कूचो मैं भी ज्वालामुखी बनकर फूटी और अंग्रेज शासकों के छक्के छुड़ा दिए।
10 मई 1857 का संग्राम जनता द्वारा छेड़ा गया पहला स्वाधीनता संग्राम था।
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सांस्कृतिक व धार्मिक रूप से यहां का सबसे बड़ा व भव्य आयोजन होता है –हर वर्ष श्रावण मास की
कांवड़ यात्रा
एक पखवाड़े तक चलने वाली इस कावड़ यात्रा में करोड़ों शिव भक्त गोमुख गंगोत्री व हरिद्वार से गंगाजल अपनी कांवर में भरकर पैदल ही दूर तक की कठिन यात्रा पूरी कर अपने अभीष्ट शिवालयों में चढ़ाते हैं।
ऋषिकेश के पास नीलकंठ महादेव, हरिद्वार में दक्षेश्वर महादेव, गाजियाबाद में दूधेश्वर महादेव, देवबंद के पास मांडकी गांव में मनकामेश्वर महादेव, मुजफ्फरनगर के संभल हेड़ा में पंचमुखी महादेव मंदिरों पर हजारों लाखों की संख्या में शिव भक्त श्रद्धालु गंगाजल चढ़ाते हैं।
बागपत के पुरा महादेव मंदिर व मेरठ में औघड़ नाथ महादेव मंदिर में लाखों की संख्या में शिवभक्त श्रद्धालु कावड़ में गंगाजल लाकर चढ़ाते हैं।
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हर वर्ष कार्तिक मास की पूर्णिमा के गंगा स्नान पर्व पर यहां हरिद्वार ऋषिकेश से अनूप शहर तक गंगा के तटों पर अनेकों स्थानों पर बड़े बड़े मेले लगते हैं। जिनमें लाखों श्रद्धालु गंगा में स्नान करने उमड़ पड़ते हैं।